9 साल पहले जिस बीएमएस को 1.18% वोट मिले
थे वही अब 30.84% पाकर बन गई लीड यूनियन
भिलाई। भिलाई इस्पात संयंत्र में सदस्यता परीक्षण के लिए चुनाव में कर्मियों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) से संबद्ध भिलाई इस्पात मजदूर संघ Bhilai Ispat Mazdoor Sangh affiliated to Bharatiya Mazdoor Sangh (BMS) को अपना प्रतिनिधि चुन लिया है।
30 जुलाई शनिवार को मतदान के बाद देर रात घोषित परिणाम में बीएमएस को 30.84 फीसदी वोट मिले हैं, जो कि पिछले चुनाव 2019 से 19.57 प्रतिशत वोट अधिक है।
2013 में हुआ था नए आईडी एक्ट के तहत पहला चुनाव
2010 में आईडी एक्ट लागू होने के बाद 2013 में पहली बार हुए चुनाव से यह 29.66 प्रतिशत की छलांग बीएमएस ने लगाई है। 9 साल पहले यूनियन को मात्र 1.18 कर्मियों का साथ मिला था।
आईडी एक्ट के तहत चौथी बार हुए चुनाव में भी किसी एक यूनियन को स्पष्ट बहुमत 51 प्रतिशत वोट नहीं मिला है। ऐसे में बीएमएस मान्यता यूनियन तो होगी, लेकिन किसी भी मुद्दे पर वार्ता करने का हक बाकी सभी यूनियनों को भी होगा। यह यूनियन सन् 1973 से पंजीकृत है। 49 साल बाद यह पहली बार प्रतिनिधित्व का मौका मिलेगा।
सीटू का रिकॉर्ड बरकरार
सबसे अधिक कर्मियों का समर्थन प्राप्त करने का रिकॉर्ड सीटू का ही है। आईडी एक्ट लागू होने के बाद 2013 में हुए पहले चुनाव में सीटू ने 44.38 और 2016 में 33.34 सर्वाधिक वोट हासिल किए थे।
BSP मान्यता चुनाव के लिए शनिवार 30 जुलाई को मतदान हुआ था। इसमें कुल 13422 मतदाताओं में से 11605 ने अपना मताधिकार का उपयोग किया। इस तरह कुल 86.8 प्रतिशत मतदान हुआ। देर शाम मतदान खत्म होने के बाद मत पेटियों को मतगणना स्थल पर ले जाया गया। उसके बाद मत पत्रों को इकट्ठा करके 50-50 मत पत्रों का बंडल बनाया गया।
मतों की गिनती देर रात 11 बजे के बाद शुरू हुई। मतों की गिनती पूरी होने के बाद BMS को 3584 मतों के साथ BSP मान्यता चुनाव का विजेता घोषित किया गया। परिणाम बाहर आते ही बाहर मतगणना स्थल के बाहर ढोल तासे बजने लगे। देर रात से सुबह तक बधाई देने वालों का तांता लगा रहा।
सुबह 6 बजे से शुरू हुए मतदान के बाद देर रात तक मतों की गिनती हुई। इसके बाद रात दो बजे के बाद चुनाव परिणाम सामने आया। इस दौरान सीटू, इंटक, बीएमएस, बीएसपी वर्कर्स यूनियन, एचएमएस एटक, एक्टू और लोइमू के पदाधिकारी मौके पर डटे रहे।
किसे कितने मिले मत
यूनियन का नाम कुल मिले मत
बीएमएस 3584
इंटक 3170
सीटू 2981
बीएसपी वर्कर्स यूनियन 1083
लोइमू 377
एचएमएस 296
एटक 64
इनवैलिड 43
कुल मत 11612
सात मत पड़े पोस्टल बैलेट से
मान्यता चुनाव को लेकर 7 मत पोस्टल बैलेट से डाले गए थे। इसमें से एक मत रिजेक्ट हो गया थे। शेष बचे 6 मतों में 4 सीटू और 2 बीएमएस को मिला था।
मान्यता प्राप्त यूनियन की जीत के दो मायने
1. कर्मी चाहते हैं अब राजनीतिक दल का संरक्षण
बीएसपी में पहली बार बीएमएस चुनकर आया है, ट्रेड यूनियन ही नहीं, शहर की दलगत राजनीति खासतौर पर भिलाई, वैशाली नगर, दुर्ग और दुर्ग ग्रामीण के आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में असर दिखेगा। पार्टी को संयंत्र के भीतर अपनी बात रखने वाले लिटरेचर के साथ तैयार कार्यकर्ता मिल गए। इससे उन्हें फायदा होगा।
2. यूनियन लीडरशिप से उठा कर्मियों का भरोसा
बीएमएस की जीत साफ संकेत देती है कि अब बीएसपी कर्मियों का ट्रेड यूनियन से भरोसा उठ रहा है। अब वे किसी यूनियन के साए तले महफूज नहीं रह सकते। अपने हक व अधिकार के लिए उन्हें राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है। पूरे चुनाव के दौरान बीएमएस खुद यही बात समझाने में लगी रही।आईडी एक्ट लागू होने के बाद से बीएसपी में बीते 4 बार के चुनाव में हर यूनियन को बड़े उलटफेर का सामना करना पड़ा है।
लाेइमू को छोड़ सभी का जनाधार घटा
लोईमू को छोड़कर इस चुनाव में सभी यूनियनों का जनाधार घटा है। पिछले चुनाव से सभी को कम वोट मिले हैं। इंटक काे एंटी इंकम्बैंसी के कारण 4.45 प्रतिशत वोट का नुकसान उठाना पड़ा। सीटू और बीडब्ल्यूयू अपना वोट बैंक बचाए रखने में लगभग सफल रही, लेकिन और लोगों को विश्वास नहीं जीत पाई।
15/35/9 का वादा पूरा करना चुनौती
वे मुद्दे जिससे बीएमएस की जीत हुई आसान-एक बार हमें परख लो: सबको परखा बार-बार, हमको भी परख लो एक बार, का नारा काम आया। वेतन समझौते के 15/35/9 (एमजीबी/पर्क्स/पेंशन) के फार्मूले को हर हाल में लागू करवाने की घोषणा ने हवा का रुख ही बदल दिया।
मुद्दों को भुनाने में सफल: 58 महीने बाद हुआ वेज रिवीजन 9 महीने से अधूरा है। एरियर्स भी अभी अधर में है। नॉन एक्जीक्यूटिव प्रमोशन पॉलिसी में विसंगति, गेच्युटी सीलिंग आदि मुद्दों को बीएमएस ने जमीनी स्तर पर भुनाया।
परिवर्तन की लहर : युवा कर्मचारी बीएमएस के पक्ष में काफी सक्रिय रहे। बतौर सजा यहां से ट्रांसफर व निलंबित किए गए युवा कर्मियों के मामले को लेकर हाल ही में इस्पात मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से बीएमएस नेताओं की मुलाकात और सिंधिया का फाइल तलब करना।
इंटक की हार के ये प्रमुख कारण
नीतियों पर सवाल: अधूरा वेतन समझौता, एनईपीपी में खामियां, प्रबंधन परस्त नीतियां और पदनाम को लेकर युवा कर्मियों में आक्रोश इंटक को ले डूबी। प्रबंधन और कर्मियों के बीच सीधे टकराहट की नौबत आई, जिसमें यूनियन का रूख प्रबंधन की तरफ रहा।
संघर्ष से दूरी : पिछले तीन साल में ऐसे कई आंदोलन व संघर्ष हुए जिससे इंटक ने दूरी बनाए रखी। साझा आंदोलन में भी शामिल नहीं हुई। 15/35/9 को लेकर 30 जून 2021 को कॉल किए गए संयुक्त हड़ताल से भी दूर रही। 25 प्रतिशत पर्क्स का समर्थन भारी पड़ा।
निलंबन और ट्रांसफर: बतौर सजा किए गए निलंबन और ट्रांसफर से युवा कर्मी खासे नाराज थे। मान्यता प्राप्त यूनियन के नाते इंटक को इसमें हस्तक्षेप और अपने कर्मियों की तरफदारी करनी थी, लेकिन अपेक्षित भूमिका में नजर नहीं आई।