एक चुनौती के तौर पर तैयार किया अपने सपनों का
घर, अब दूर-दूर से लोग आ रहे इस घर को देखने
तिरुअनंतपुरम। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए केरल के आर्किटेक्ट मानसी और गुरुप्रसाद ने एक इको-फ्रेंड्ली घर बनाया है। इस घर को बनाने के लिए उन्होंने मिट्टी, री-सायकल का गई लकड़ियां और गुड़ आदि का इस्तेमाल किया है। आज यह घर कम खर्च, पर्यावरण अनुकूल और विशिष्ट देशी सामग्री के इस्तेमाल के चलते सोशल मीडिया पर ट्रेड कर रहा है।
यह घर न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि मौसम के अनुकूल भी है। मानसी और गुरुप्रसाद ने अपने इस घर में पंखे लगाए नहीं और उन्हें एसी की जरूरत भी नहीं है। क्योंकि उनका यह घर इस भीषण गर्मी में शीतलता का एहसास देता है और ठंड में घर को अंदर से गर्म रखता है।
छह साल में तैयार हुआ सपनों का घर
केरल के पलक्कड़ जिले के पट्टांबी में धान के खेतों से सटे एक खूबसूरत गांव में यह घर है, जो आने-जाने वाले लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच ही लेता है। मिट्टी से बना यह घर आस-पास बने मकानों में सबसे अलग दिखता है। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बनाया गया यह घर आर्किटेक्ट मानसी और उनके पति आर्किटेक्ट गुरुप्रसाद ने बनाया है।
इस घर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे बनाने के लिए प्राकृतिक सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया है। आर्किटेक्ट मानसी, भूमिजा क्रिएशन की सह-संस्थापक भी हैं। उनके इस आवास में अटैच्ड बाथरूम के साथ 3 बेडरूम है। 2,000 वर्गफुट में इस आवास के निर्माण में छह साल का समय लगा।
ऐसे आया विचार इको-फ्रेंड्ली घर बनाने का
मानसी और उनके पति के मन में मिट्टी से घर बनाने का ख्याल सबसे पहली बार तब आया, जब एक सोशल वर्कर, मुकेश सी ने अपने चार लोगों के परिवार के लिए इको-फ्रेंड्ली घर बनाने के लिए इन दोनों से संपर्क किया। मानसी कहती हैं कि मुकेश के साथ टिकाऊ और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाले सामग्री या विधियों का उपयोग करके एक इको-फ्रेंड्ली घर बनाने को लेकर चर्चा शुरु हुई थी, जो धीरे-धीरे मिट्टी का घर बनाने पर जा कर खत्म हुई।
इस घर का नाम ‘गिया’ क्यों रखा?
मानसी कहती हैं, “किसी भी प्रोजेक्ट को शुरु करने से पहले हम रास्ते में आने वाली सभी चुनौतियों पर विचार करते हैं। फिर हम वहां कुछ ऐसा बनाने की कोशिश करते हैं, जो प्रकृति के करीब हो और इस बात का खास ख्याल रखते हैं कि आस-पास के वातावरण को नुकसान न पहुंचे।”
उनका कहना है कि जब उन्होंने साइट का दौरा किया, तो उन्होंने देखा कि वहां एक मिट्टी का घर बनाने की क्षमता है। क्योंकि वहां से उन्हें बिना ज्यादा हेर-फेर किए आसानी से मिट्टी मिल सकती थी। वह कहती हैं, “इस आइडिया से हम और हमारे क्लाइंट, दोनों काफी उत्साहित हो गए थे।”
आर्किटेक्ट्स ने अपने इस विचार और प्रयास को ‘गिया’ नाम दिया है। इस ग्रीक शब्द का मतलब धरती मां होता है। 2,000 वर्गफुट पर बना यह सस्टेनबल और इको-फ्रेंड्ली घर रिड्यूज, रीयूज और रीसायकल के कॉन्सेप्ट पर बना है। इसे बनाने के लिए प्राचीन टिकाऊ निर्माण विधियां अपनाई गई हैं, जिससे इसे बनाने में काफी कम खर्च आया है।
प्राचीन कोब तकनीक से बना है यह घर
मुकेश एक सोशल वर्कर थे, इसलिए उनके और उनकी पत्नी स्मिता के घर पर मेहमानों का आना-जाना आम बात थी। जब अपना खुद का घर बनाने की बात आई, तो दोनों के लिए ऐसे इको-फ्रेंड्ली घर बनाने का फैसला लेना मुश्किल नहीं था। वह कुछ ऐसा करना चाहते थे, जिससे समाज में एक संदेश जाए।
मुकेश बताते हैं, “जब मेरी बेटी अपने स्कूल से पौधे लेकर आई, तो हमें नहीं पता था कि उन्हें कहां लगाया जाए। हम एक छोटे से कंक्रीट के घर में रह रहे थे, जिसके चारों ओर इतनी जगह नहीं थी और तब हमने एक ऐसी जगह खरीदने का फैसला किया, जहां हम एक पर्यावरण के मुताबिक घर बना सकें और हमारे बच्चों और प्रकृति के लिए पर्याप्त जगह हो।” यही सोच कर मुकेश ने धान के खेत के पास 21 सेंट ज़मीन खरीदी थी। 10 सेंट ज़मीन पर बना यह एक मंजिला मिट्टी का घर, केरल की पारंपरिक वास्तुकला और प्राचीन कोब तकनीक को ध्यान में रखकर बनाया गया है। मानसी कहती हैं कि उन्होंने कुछ इको-फ्रेंड्ली निर्माण विधियों पर विचार किया और अंत में कोब विधि चुनने का फैसला किया जो हाथों की कलाकारी के लिए एकदम सही था।
पूर्वजों की इस्तेमाल की तकनीक अपनाना है आसान
कोब विधि के बारे में विस्तार से बात करते हुए मानसी कहती हैं, “कोब विधि में, हम दीवार बनाने के लिए मिट्टी, पुआल, चूने और पानी के मिश्रण का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, मिश्रण में स्टेबलाइजर्स के लिए कई अन्य प्राकृतिक सामग्रियां, जैसे- चावल की भूसी, गुड़ और कडुका के पत्ते आदि मिलाए जाते हैं। ये सभी प्राकृतिक चीज़ें, बेहतर बंधन और कीट नियंत्रण में भी काफी मदद करती हैं। एक बार जब यह सूख जाता है, तो सतह को बारीक छलनी वाली मिट्टी और चूने के मिश्रण से प्लास्टर किया जाता है।”
मानसी बताती हैं कि इस प्रक्रिया में किसी भी तरह का केमिकल इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मिट्टी की दीवारों के अलावा, उन्होंने साइट के भीतर कुछ दीवारें, पत्थर का इस्तेमाल करके भी बनाई हैं। ये पत्थर अंदर कुआं खोदते समय निकले थे। मानसी कहती हैं, “हमने घर बनाने के लिए केवल स्थानीय चीज़ों का ही उपयोग किया है, चाहे वह मिट्टी हो या पत्थर।”
घुमावदार तरीके से बने इस घर में तीन बड़े बेडरूम हैं, जिनके साथ बाथरूम अटैच्ड हैं। घर में एक किचन, शयन घर, पढ़ाई की जगह,खाने की जगह,बरामदा, बैठने की जगह, कार रखने की जगह के साथ एक सुंदर खुला आंगन है, जिसमें लिली पॉन्ड भी है। मुकेश कहते हैं, “आंगन की रोशनी आस-पास की जगहों तक जाती है और जब बारिश होती है, तो आंगन से पानी गिरता है। जो भूजल को रिचार्ज करने में मदद करता है।”
अंदर से दिखाई देता है घर का हर कोना, सिर्फ बाथरुम में है सीमेंट का प्लास्टर
मुकेश कहते हैं कि घर के अंदर की सबसे अच्छी बात यह है कि यहां से घर का हर कोना दिखाई देता है। मुकेश की घर में सबसे पसंदीदा जगह खुला आंगन है। बेडरूम में स्थाई बेड बने हुए हैं, जिसमें सामान रखने की जगह भी है। मुकेश बताते हैं कि बेड का फ्रेम लाल ईंटों से बनाया गया है और इसमें सामान स्टोर करने की पर्याप्त जगह है। इसके अलावा, हर कमरे में एक बड़ी आलमारी बनाई गई है, ताकि चीजें इधर-उधर बिखरी रहने की बजाए अंदर रखी जा सकें।
हालांकि घर की अधिकांश दीवारों पर मिट्टी का प्लास्टर किया गया है, लेकिन बाथरूम में सीमेंट का प्लास्टर किया गया है। मानसी कहती हैं कि बाथरूम ऐसी जगह है, जहां नमी होने का जोखिम हमेशा रहता है, इसलिए इस जगह सीमेंट का उपयोग करना बेहतर था। वह आगे बताती हैं कि नमी के जोखिम को कम करने के लिए रसोई और बाथरूम की दीवारों पर टूटी हुई टाइलों का भी इस्तेमाल किया गया है। इसके अलावा कमरों में टूटी हुई टाइलों का उपयोग करके कई जगहों को सजाया गया है।
घर के अलग-अलग कोनों को जोड़ते हुए बरामदे को बढ़ाकर स्टडी स्पेस बनाया गया है। मानसी बताती हैं कि वहां बच्चों के पढ़ने के लिए स्टडी टेबल भी बनाया गया है।
एसी लगाया नहीं और पंखे की भी नहीं पड़ती ज़रूरत
मुकेश कहते हैं, कि खिड़कियां, दरवाजे और दूसरी चीजों के लिए इस्तेमाल की गई ज्यादातर लकड़ियां पुरानी हैं या उन्हें रीयूज किया गया है। लकड़ियां भी स्थानीय रूप से ही प्राप्त की गई हैं। घर की छत के लिए डबल-लेयर्ड क्ले टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है। मानसी बताती हैं, “दो परतों के बीच की जगह गर्मी को कम करने में मदद करती है और पूरे कमरे को ठंडा रखती है। सभी मिट्टी की टाइलें दोबारा इस्तेमाल की गई हैं।” मानसी आगे बताती हैं कि बिल्डिंग के कंपाउंड की दीवारें बनाने के लिए भी उसी मिट्टी की टाइलों का उपयोग किया गया है।
इस घर में एसी नहीं लगाया गया है। मुकेश का कहना है कि कंक्रीट के घर की तुलना में यह घर ज्यादा ठंडा रहता है। वह कहते हैं, “इस गर्मी में भी घर ठंडा रहता है। इसके अलावा, हम पंखें का उपयोग भी सिर्फ दोपहर के समय करते हैं, क्योंकि तब मौसम थोड़ा गर्म हो जाता है। हम दिन और रात में पंखा नहीं चलाते।”
घर ठंडा रहने के बारे में बात करते हुए मानसी कहती हैं कि यह कोब विधि इस्तेमाल करने का सबसे बड़ा फायदा है। दीवारें मिट्टी से बनी हैं, इसलिए घर ठंडा रहता है। ईंट की दीवारों के विपरीत, मिट्टी की दीवारें मोटी होती हैं और इसलिए यह अंदर ठंडक बरकरार रखती हैं। घर की फ्लोरिंग के लिए पारंपरिक रंगीन ऑक्साइड का इस्लेमाल किया गया है।
कुछ परेशानियों के कारण लगा ज्यादा समय, लागत आई 50 लाख
किचन में लकड़ी के रैक और ग्रेनाइट स्लैब बनाए गए हैं। मुकेश बताते हैं, “किचन के बारे में सबसे अच्छी बात इसकी एक छोटी सी खिड़की है, जो सामने के यार्ड में खुलती है जहाँ से घर में आने वाले लोगों को देखा जा सकता है। हम इस खिड़की से उन्हें चाय या कॉफी भी परोस सकते हैं।”
मुकेश कुछ आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे, इसलिए घर बनाने में कुछ वक्त लगा। यह घर पूरी तरह तैयार करने में करीब छह साल लगे। मुकेश कहते हैं, “आर्किटेक्ट्स ने यह घर बनाने का करीब 35 लाख रुपये का बजट दिया था, लेकिन चूंकि निर्माण प्रक्रिया करीब छह साल तक चली, इसलिए खर्च थोड़ा बढ़ा और इसे बनाने में करीब 50 लाख रुपये लगे।” वह कहते हैं कि हालांकि, इसी आकार के कंक्रीट के घर बनाने की तुलना में अब भी इसकी कुल लागत कम है।