दुनिया का एकमात्र मंदिर, जहां भगवान
गणेश का हाथी नही मानव का सिर
चेन्नई। भारत में भगवान गणेश को समर्पित कई चमत्कारिक मंदिर हैं। हर मंदिर का पौराणिक महत्व है।
तमिलनाडु के तिरुवरूर जिले में स्थित भगवान गणेश का मंदिर Temple of Lord Ganesha located in Tiruvarur district of Tamil Nadu भी अपनी खासियत और पौराणिक महत्व के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह मंदिर दूसरे मंदिरों से बिल्कुल अलग है।
जहां हर मंदिर में भगवान गणेश गज रूप में विराजमान हैं, तो वहीं इस मंदिर में भगवान की पूजा इंसान के रूप में की जाती है।
गजमुख की मान्यता से पहले
का चेहरा दिखाती है यह प्रतिमा

मान्यता है कि भगवान शंकर ने एक बार क्रोधित होकर भगवान गणेश की गर्दन को काट दिया था। इसके बाद भगवान श्री गणेश को गज का मुख लगा दिया गया।
हर मंदिर में भगवान गणेश की गज रूप में प्रतिमा स्थापित है, लेकिन आदि विनायक मंदिर में भगवान गणपति के इंसान के चेहरे वाली प्रतिमा स्थापित है।
गजमुख लगाए जाने से पहले भगवान का चेहरा का इंसान था, इसलिए विनायक मंदिर में उनके इस रूप की पूजा होती है।
भगवान राम ने की थी यहां
भगवान गणेश की पूजा

आदि विनायक मंदिर में भगवान गणेश के साथ यहां पर भगवान शिव और माता सरस्वती की भी पूजा होती है।
इस मंदिर में विशेष तौर पर भगवान शंकर की ही पूजा होती है, लेकिन श्रद्धालु आदि विनायक और मां सरस्वती की भी पूजा करते हैं।
चावल के चार पिंड बदल गए थे कीड़ों में
मान्यता है कि पूजा के दौरान चावल के चार पिंड शिवलिंग बन गए। यह चारों शिवलिंग आदि विनायक मंदिर के पास मौजूद मुक्तेश्वर मंदिर में स्थापित हैं जिनकी पूजा की जाती है।
बताया जाता है कि महा गुरु अगस्त्य स्वयं हर संकटहार चतुर्थी को आदि विनायक की पूजा करते हैं।
बाचावानी के तिल गणेश, हर
साल बढ़ते हैं तिल बराबर

होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम जिले) के बाचावानी गांव Bachawani village of Hoshangabad (now Narmadapuram district) में विराजित चार शताब्दी पुराने मंदिर में ही लोग गणेशजी की आराधना करते हैं। यहां गणेशजी की स्थापना नहीं की जाती, इसके पीछे यहां के लोगों का मानना है कि ऐसा करने से कोई बड़ी विपदा का सामना करना पड़ता है। अपनी बातों को बल देते हुए वे कुछ उदाहरण भी बताते हैं।
गांववाले बताते हैं कि एक बार एक परिवार ने घर में गणेशप्रतिमा स्थापित कर ली थी। अचानक उस घर में आग लग गई और बड़ी मुश्किल से आग पर काबू पाया गया था। फायर ब्रिगेड समय पर नहीं पहुंचती तो पूरा गांव आग की चपेट में आ जाता। तब से इस बात को और अधिक बल मिल गया और कोई भी गांव में गणेश स्थापना नहीं करता।
ऐसा नहीं है कि यहां के लोग गणेश उत्सव नहीं मनाते। वे गांव में ही चार शताब्दी पुराने तिल गणेश में पूजन-अर्चन करते हैं। तिल गणेश के बारे में भी कहानी है। बताया जाता है कि ये गणेश प्रतिमा हर साल तिल बराबर बढ़ रही है। पुजारी मनोहरदास बैरागी ने बताया कि इस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है। जिस पर ऋद्धि, सिद्धि, मूषक व शुभ लाभ भी बने हुए हैं।
गांव के एक बुजुर्ग बाबूलाल बड़कुर ने बताया कि मेरा जन्म इसी गांव में हुआ है। मैंने बचपन में प्रतिमा को छोटा स्वरूप में देखा था। लेकिन अब यह प्रतिमा बढ़ी हो गई है। पुजारी बैरागी ने बताया कि 400 साल पहले यह प्रतिमा यहां खेत में मिली थी। तभी से यहां मदिंर बनवाकर इस मूर्ति की स्थापना कराई गई। तब से लेकर अब तक माघ महीने की तिल गणेश चतुर्थी को गणेश धाम में मेला लगता है।
वहीं ग्राम बाचावानी के लोगों का मानना है कि श्री गणेश उनकी प्राकृतिक विपदाओं से रक्षा करते हैं। ग्रामीणों ने दावा किया कि बाचावानी के खेतों में ओलों से कभी नुकसान नहीं हुआ। यहां ओले गिरते ही नहीं हैं और यदि कभी गिरने भी लगें तो तो मंदिर का घंटा बजाते ही बंद हो जाते हैं।