रायपुर से 110 किमी दूर बार-नवापारा में तैयार हो रहा नया बसेरा
रायपुर। जिस तरह मध्य प्रदेश में दक्षिण अफ्रीका के जंगलों से चीतों को लेकर बसाया गया है, ठीक उसी तर्ज पर बाघों को छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभ्यारण्य में बसाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं।
राजधानी रायपुर से महज 110 किलोमीटर दूर बारनवापारा में बाघों का घर बनाने तैयारी की जा रही है। जल्द ही प्रदेश सरकार केंद्रीय वन मंत्रालय को पत्र लिखकर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के जंगलों से बाघों को प्रदेश के बारनवापारा में बसाने की स्वीकृति मांगेगी।
छत्तीसगढ़ राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में हुई थी चर्चा
दरअसल, दिसंबर 2022 को प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक ली थी। इसमें प्रदेश में बाघों की संख्या चार गुना करने के लिए ‘ग्लोबल टाइगर फोरम’ के प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी। बैठक में फैसला लिया गया था कि प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र से बाघ लाए जाएंगे। इन बाघों को अचानकमार बाघ अभयारण्य या बारनवापारा अभ्यारण्य छोड़े जाने की बात सामने आई थी।
वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की टीम करेगी सर्वे
सरकार के इस फैसले के बाद वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की टीम दोनों वन अभ्यारण्य में जल्द सर्वे शुरू करने जा रही है। ये टीम अपने सर्वे के दौरान सबसे पहले ये देखेगी कि इन जंगलों में बाघों के लिए पर्याप्त खुराक है या नहीं। उन्हें अपने भोजन के लिए जंगल से बाहर तो नहीं जाना पड़ेगा। सर्वे में ये भी चेक किया जाएगा कि बारनवापारा अभयारण्य के पूरे जंगली इलाके की डेंसिटी क्या है। यानी यहां के जंगल बाघों के रहने के लायक है या नहीं। बाघों के रहने के दौरान जंगल के आस-पास बसे गांव में रहने वालों को किसी तरह का खतरा तो नहीं रहेगा।
इसी आधार पर वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की टीम अपनी हैबिटेट स्टेबिलिटी एनालिसिस रिपोर्ट तैयार करेगी। टीम के विशेषज्ञ अपनी रिपोर्ट प्रदेश के वन विभाग को सौंपेंगे। प्रदेश सरकार इस रिपोर्ट के साथ अपने प्रस्ताव को केंद्र सरकार से मंजूरी के लिए भेजेगी। इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार केंद्रीय वन मंत्रालय से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के जंगलों से बाघों को लाने की अनुमति मांगेगी।
प्रदेश सरकार के वन विभागों के अफसरों का कहना है कि बारनवापारा अभयारण्य में एक हजार से ज्यादा हिरण हैं। चीतल, सांभर, नीलगाय और गौर जैसे वन्य प्राणी भी सैकड़ों की संख्या में मौजूद हैं। ऐसी स्थिति में यहां बाघों को खुराक के लिए किसी प्रकार कोई दिक्कत नहीं होगी।
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ऐसी स्थिति में वन मंत्रालय से यहां बाघों को बसाने की मंजूरी मिलने में दिक्कत नहीं होगी। बारनवापारा के कोर एरिया में 21 गांव थे। इसमें से 3 गांवों को जंगल की सरहद के बाहर बसा दिया गया है। उन गांवों की शिफ्टिंग की जा चुकी है। अभी 18 गांव को शिफ्ट करने का प्लान है। इसके लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा जा चुका है। वहां से मंजूरी के बाद उन गांवों की शिफ्टिंग भी की जाएगी। गांवों की शिफ्टिंग के बाद लोगों का जंगल के इलाके में मूवमेंट कम होगा।
बाघों के लिए राज्य सरकार ने बनाया ये प्लान
प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र से चार बाघों के जोड़े को यहां लाने का प्लान तैयार किया है। बाघों का जोड़ा पूरी तरह से जंगली होगा। बाघों को ट्रैंक्युलाइज यानी बेहोश करके पकड़ा जाएगा। उन्हें यहां लाते ही सीधे जंगल में नहीं छोड़ा जाएगा। सबसे पहले घने जंगल के बीच 25 से 30 एकड़ में बाड़ बनाकर उसमें रखा जाएगा।
इसके बाद उन्हें खुराक के तौर पर कुछ वन्य प्राणी बारी-बारी छोड़े जाएंगे, ताकि यहां के वातावरण में रहते हुए वे शिकार की अपनी आदत बनाए रखें। एक निर्धारित समय बाद उनके बाड़े के साइज बढ़ाया जाएगा। धीरे-धीरे साइज बढ़ाते हुए उन्हें एक दिन पूरी तरह से आजाद कर दिया जाएगा।
प्रदेश के बारनवापारा अभयारण्य में 2011 में अंतिम बार गणना के दौरान बाघ के प्रमाण मिले थे। इसके बाद न तो ग्रामीणों ने और न ही वन विभाग के किसी भी दल ने यहां बाघ को देखा है। कैमरे ट्रैप में भी कभी यहां बाघ की तस्वीर नहीं मिली है। वन विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार 1970 के दशक में यहां 25-30 बाघ हुआ करते थे। उसके बाद धीरे-धीरे इनकी संख्या कम हुई। इसकी सबसे बड़ी वजह गांवों में आबादी और लोगों का मूवमेंट बढ़ना थी।