8 मुस्लिम परिवार ‘गंगाजली’ तैयार करते हैं
25 हुनरमंद कारीगर प्रतिदिन ‘गंगाजली’ बनाते हैं
300 ‘गंगाजली’ एक कारीगर एक दिन में तैयार करता है
25 हुनरमंद कारीगर प्रतिदिन ‘गंगाजली’ बनाते हैं
300 ‘गंगाजली’ एक कारीगर एक दिन में तैयार करता है
लखनऊ। कांवड़िए कांच की जिस ‘गंगाजली’ में गंगा जल लाते हैं, क्या आपको पता है कि वह कहां बनती है? नहीं पता तो हम आपको बताते हैं। ‘गंगाजली’ का निर्माण होता है उत्तर प्रदेश में कासगंज के एक छोटे से गांव कादरवाड़ी में। अभी सावन का महीना चल रहा है। लोग शिव भक्ति में लीन हैं। देशभर से श्रद्धालु कांवड़ लेकर गंगाजी पहुंच रहे हैं।
गंगाजी से गंगाजल भरकर अपने घर लौट रहे हैं। सावन को लेकर तैयारियों में जुटे श्रद्धालुओं की आस्था को मुस्लिम परिवारों के हाथों का हुनर और खुशनुमा बना रहा है।
कांवड़ के लिए गंगाजली का निर्माण यहां के कादरवाड़ी गांव के मुस्लिम परिवारों द्वारा किया जा रहा है। ‘गंगाजली ‘ तैयार करना इन मुस्लिम परिवारों के लिए रोजी रोटी से ज्यादा धार्मिक सौहार्द का काम है। तपती आग में कांच को फूंक से आकार देकर बोतल नुमा ‘गंगाजली’ तैयार करना इन परिवारों का खास हुनर है।
कादरवाड़ी में भट्टियां धधक रही गंगाजली के निर्माण में
तीर्थनगरी के कासगंज गेट, चंदनचौक, हरि की पैड़ी, लहरा में कांवड़ मेला लगता है। राजस्थान, एमपी आदि प्रदेशों के सुदूरवर्ती क्षेत्रों के कांवड़िए तीर्थनगरी के लहरा घाट से गंगाजल भरकर अपने क्षेत्रों के शिवालयों तक पैदल यात्रा कर भोले बाबा का गंगाजलाभिषेक करते है।
कांवड़िए लहरा घाट से जिन कांच की गंगाजली में गंगाजल भर कर ले जाते हैं। उसे कादरवाड़ी के मुस्लिम कारीगर कई दिनों तक लग कर तैयार करते हैं। इस समय कादरवाड़ी में कई भट्टियां धधक रही हैं। यहां कारीगर दिन-रात गंगाजली के निर्माण में लगे हैं।
गंगाजली बनाने में जुटे कादरवाड़ी के मुस्लिम परिवार कांच के फिरोजाबाद शहर तक अपने हुनर के लिए जाने जाते हैं। वह फिरोजाबाद से कच्चा कांच लाते हैं। फिर अपनी धधकती भट्टियों में कच्चे कांच को आकार देकर गंगाजली का निर्माण करते हैं। इस तरह गंगाजली का यह काम फिरोजाबाद से भी जुड़ गया है।
पीढ़ियों से बन रही है गंगाजली
कारीगर फारूख ने बताया कि यह काम सात पीढ़ियों से हो रहा है. सावन का महीने शुरू होने से कई महीने पहले व्यापारी कारीगरों को एडवांस में पैसे दे जाते हैं. इसके बाद फिरोजाबाद से कच्चा माल लाकर गंगाजली तैयार किया जाता है।
कारीगर असलम ने बताया कि यह काम वर्ष के सिर्फ तीन महीने तक सीमित है. बाकी के दिनों में वे या तो खेतों में मजदूरी करते हैं या बड़े शहरों में जाकर मेहनत मजदूरी .
सत्तार की गंगाजली पर फिदा सोरों की कांवड़
कांवड़ के लिए गंगाजली(कांच की बोतल जिसमें गंगा जल भरा जाता है) तैयार करना सत्तार मियां के लिए रोजी तो एक कारण है ही, समाज के लिए सर्वधर्म समभाव के प्रति इनके समर्पण की सराहनीय गाथा भी।
रोजी के प्रति समर्पण भी इतना कि तीन पीढि़यों से हुनर की ये विरासत इन्हीं जैसे चार मुस्लिम परिवारों के पास रही है। धधकती भट्ठी में आग उगलते कांच को पाइप के जरिए मुंह से हवा फेंककर जब बोतलनुमा गंगाजली तैयार करते हैं तो हिदुओं के पवित्र कांवड़ का अहम पात्र बनने पर ये मुस्लिम परिवार खुदा का भी शुक्रिया अदा करते हैं।
श्रावण मास शुरू होते ही भक्ति की राहों पर कांवड़ की कतारें नजर आने लगी हैं। इस कांवड़ में गंगा घाट से जल ले जाकर भक्त शिवालयों में अर्पित करते हैं। गंगाजल को खास तरह के पात्र (गंगाजली) में भरा जाता है। ये गंगाजली कांच की बोतल जैसी होती है।
यहां बनती है गंगाजली
गंगाजली का निर्माण सोरों क्षेत्र के कादरवाड़ी में ही चार मुस्लिम परिवारों द्वारा किया जाता है। 50 वर्ष से गंगाजली तैयार कर रहे सत्तार मियां कहते हैं कि दादा के जमाने से काम चल रहा है। गांव में कुल दस भट्ठियां हैं। धरामई, सहसवान और जलेसर से आए परिवारों ने डेढ़-दो सौ वर्ष पहले धामपुर के नगीना में इस काम को सीखा था।
इसके बाद उन्होंने यहां पर काम करना शुरू किया। वर्तमान में चार परिवारों में दस भट्ठियां चल रही हैं। सत्तार मियां बताते हैं कि विरासत में मिला ये सिर्फ अपने को ही सिखाते हैं। औरों को सिखाने पर हमारे हाथ से ये काम छिनने का खतरा रहेगा।
ऐसे तैयार होती है गंगाजली
भट्ठी पर गंगाजली बना रहे सत्तार मियां के हाथ मशीन की तरह चलते हैं। भट्ठी से गर्म कांच निकालने के बाद पाइप के जरिए मुंह की हवा से उसे फुलाते हैं। लोहे की सरिया के सपोर्ट से दबाव बनाकर घुमाते हैं, जिससे यह कांच लंबा आकार ले लेता है।
फिर से मुंह की फूंक से बोतल का आकार देकर तपने के लिए दूसरी भट्ठी में रखते हैं।गंगाजली की यह शीशी कासंगज के सोरोंसे लेकर रामघाट एवं राजघाट नरौरा, कछला, फर्रुखाबाद के रामपुर सहित अन्य जगह पर भी बिकने के लिए जाती हैं।