झारखंड का गिद्धी गांव है पूरे देश के लिए मिसाल
रांची। भारत के कई ऐसे गांव हैं जहां के हर घर में कोई ना कोई शख्स भारतीय सेना (Indian Army) में है। उस गांव का हर युवा सेना में जाने का सपना देखता है। लेकिन आज हम आपको झारखंड (Jharkhand) के ऐसे गांव के बारे में बताएंगे जहां पर हर घर में अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आचार्य पुरोहित बसते हैं और उनके घर का लाडला देश की सेवा में लगा हुआ है।
हर घर का बुजुर्ग आचार्य और पुरोहित
जी हां, झारखंड में गुमला जिले के रमना प्रखंड स्थित गिद्धी गांव (Giddhi village located in Ramna block of Gumla district in Jharkhand) के हर घर में बुजुर्ग पुरोहित या आचार्य का काम कर रहे हैं और उनके घर के युवा सेना और अर्द्धसैनिक बलों में हैं। ब्राह्मण समुदाय वाला गिद्धी गांव की आबादी कुल 350 है और यहां पर लगभग 70 से ज्यादा युवा भारतीय सेना, अर्द्धसैनिक बल और पुलिस में तैनात हैं।
कहते हैं, गिद्धी गांव के युवा सुबह उठकर सबसे पहले भारत मात की जय बोलते हैं और इसके बाद गांव में बने खेतनुमा मैदान में सेना में भर्ती के लिए रेस लगाते हैं। गांव का हर युवा सेना में भर्ती होने के लिए जुनूनी है और जुनून ऐसा कि वे उबड़-खाबड़ और पत्थरीले मैदान में भी सुबह शाम घंटों पसीना बहाते हैं। आपको देश के विभिन्न हिस्सों में तैनात जवानों में गिद्धी गांव का कोई ना कोई युवा जरूर मिल जाएगा।
हर परिवार का युवा है भारतीय सेना में तैनात
गिद्धी गांव के कुछ घर तो ऐसे हैं जहां पर एक नहीं बल्कि दो या तीन बेटे भारत माता की सेवा में लगे हुए है और उनके यहां पीढ़ी दर पीढ़ी से लोग केवल देश की सेवा में ही तत्पर हैं। अब इन परिवारों के लिए देश की सेना में शामिल होना रिवाज जैसा बन गया है।
इस गांव के हर घर में कोई ना कोई युवा बीएसएफ, सीआरपीएफ, एसएसबी और पुलिस (BSF, CRPF, SSB and Police) में तैनात है। गांव के लोगों को अपने गांव के युवाओं पर गर्व है।
1979 से शुरू हुआ था सिलसिला
साल 1979 में गिद्धी गांव से सबसे पहले आर्मी में उदय कुमार पांडेय और सुरेंद्र कुमार पांडेय की भर्ती हुई थी। उदय कुमार पांडेय सेनानायक बनकर रिटायर हुए और सुरेंद्र कुमार हवलदार के पद से सेवानिवृत्त हुए। फिर गांव में युवाओं के बीच सेना में जाने का ऐसा जुनून जगा कि आज गांव के हर घर में कोई ना कोई युवा भारत माता की सेवा में लगा हुआ है।
इस गांव की एक और खास बात यह है कि इस गांव के हर घर में कोई ना कोई बूढ़ा और बुजुर्ग इंसान आर्चाय और पुरोहित है। जिन घर-परिवारों के बच्चे सेना में तैनात हैं उन्हीं के घर के बुजुर्ग पुरोहित या कर्मकांडी हैं।
गिद्धी गांव में धर्म और संस्कृति की रक्षा का खास ख्याल रखा जाता है। लेकिन इस गांव में अभी भी विकास नहीं हुआ है, यहां की सड़के उबड़-खाबड़ है और शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था नहीं है। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद 6 दर्जन से ज्यादा युवा हर दिन प्रैक्टिस कर रहे हैं और सेना में भर्ती होने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।