अन्ना मणि के शोध की वजह से आज मौसम का अंदाजा लगा पाते हैं
दुनियाभर के मौसम वैज्ञानिक, गूगल ने डूडल बना कर दिया सम्मान
नई दिल्ली। भारत में महिला वैज्ञानिकों का नाम लेते ही हम सभी, भारत के बहुचर्चित Mars Orbiter Mission (MOM) की टीम की सदस्य रहीं महिला वैज्ञानिकों को याद करते हैं। लेकिन हममें से कम ही लोग जानते हैं कि इस मिशन से सालों पहले, भारत की एक महिला वैज्ञानिक ने मौसम विज्ञान से जुड़ी ऐसी बेहतरीन खोज की थी, जिसकी वजह से आज हम मौसम का इतना सटीक अनुमान लगा पाते हैं।
‘भारत की मौसम महिला’ अन्ना मणि को आज पूरा विश्व याद कर रहा है। उनका नाम और उनके काम देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के लिए कितने अहम हैं, इसका अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि गूगल ने उनकी 104वीं जयंती पर एक विशेष डूडल बनाया है।
मौसम का सही अनुमान लगाने वाले उपकरणों को डिजाइन करने में अहम भूमिका
अन्ना मणि, भारतीय मौसम विभाग की उप महानिदेशक थीं और उन्होंने सोलर रेडिएशन, ओज़ोन और पवन ऊर्जा उपकरण के क्षेत्र में अपने बेहतरीन काम से कई वैज्ञानिकों का काम आसान बना दिया।
मौसम पर नज़र बनाए रखने और सही अनुमान लगाने वाले उपकरणों को डिजाइन करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। आज मौसम का पूर्वानुमान लगाना अगर संभव हो पाया है, तो सिर्फ अन्ना मणि की वजह से ही।
नृत्यांगना बनना चाहती थीं अन्ना, अपनाया फिजिक्स को
अन्ना मणि का जन्म 23 अगस्त, 1918 को केरल के पीरुमेदु में हुआ था। उनके पिता एक सिविल इंजीनियर थे। एक संपन्न परिवार में जन्मीं मणि जब छोटी थी, तब उन्होंने एक डांसर बनने का सपना देखा था।
लेकिन तब डांस को करियर के तौर पर नहीं देखा जाता था और उनका परिवार चाहता था कि वह पढ़ाई करके कुछ अच्छा करें, अपना करियर बनाएं, जिसके बाद उन्होंने भौतिकी में करियर बनाने का फैसला किया।
साल 1939 में उन्होंने मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज से भौतिक और रसायन विज्ञान में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की और 1940 में भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में रिचर्स के लिए स्कॉलरशिप हासिल की। इस दौरान, उन्होंने प्रो. सीवी रमन के अधीन काम करते हुए रूबी और हीरे के ऑप्टिकल गुणों पर रिसर्च की और भौतिकी में आगे की पढ़ाई के लिए 1945 में लंदन के इंपीरियल कॉलेज चली गईं।
गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित थीं मणि
लंदन में ही उन्होंने मौसम संबंधी उपकरणों के बारे में ज्यादा पढ़ना शुरू किया। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने पांच शोध पत्र लिखे और अपना पीएचडी रिसर्च पेपर तैयार किया, लेकिन उन्हें पीएचडी की डिग्री नहीं मिली, क्योंकि उनके पास भौतिकी में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं थी।
देश की आज़ादी के बाद 1948 में वह लंदन से भारत लौटीं और पुणे के मौसम विभाग में काम करना शुरू किया। वह गांधीवादी विचारधारा से बहुत ज्यादा प्रभावित थीं।
बेंगलुरू की वर्कशाप में करती थीं शोध
1969 में अन्ना मणि को विभाग का उप महानिदेशक बना दिया गया। उन्होंने बंगलुरु में अपनी एक वर्कशॉप भी बनाई थी, जहां वह हवा की गति और सौर ऊर्जा को मापने का काम करती थीं। भारत आकर वह गांधीवादी विचारधारा से काफी प्रभावित हुईं, जिसके बाद उन्होंने पूरी जिंदगी गांधी जी के मूल्यों पर ही चलने का फैसला किया। यही कारण था कि वह ज्यादातर खादी के कपड़े ही पहनती थीं।
आम लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो रहे उनके शोध
1976 में वह भारतीय मौसम विभाग के उप-निदेशक पद से रिटायर हुईं। उन्हें साल 1987 में INSA केआर रामनाथन मेडल से सम्मानित किया गया। 16 अगस्त 2001 को तिरुवनंतपुरम में इस महान वैज्ञानिक का निधन हो गया।
उन्होंने इतनी पढ़ाई और इतने रिसर्च उस दौर में किए, जब भारत में महिलाओं का शिक्षण दर मात्र एक प्रतिशत था। लेकिन उनके बेहतरीन रिसर्च आज भी आम लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो रहे हैं।