कारोबारी परिवार का छोटा लाडला, जिसने पिता के सपनों को दी नई उड़ान
मुंबई। टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री अब हमारे बीच नहीं हैं। 4 सितंबर रविवार को एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई।
मशहूर उद्योगपति शापूरजी पालोनजी के छोटे बेटे सायरस ने बेहद कम समय में न केवल शापूरजी ग्रुप को सफलता की नई बुलंदियों तक पहुंचाया, बल्कि टाटा ग्रुप में भी कंज्यूमर से सीधे जुड़ाव बढ़ाने की पहल की, जो फायदे का कारण बना। आइए जानते हैं उद्योग जगत में योगदान, उपलब्धियां।
बनाए कई बड़े रिकॉर्ड
आयरलैंड में पैदा हुए साइरस मिस्त्री को उद्योग जगत का व्यापक अनुभव था। उन्होंने लंदन बिजनेस स्कूल से पढ़ाई के बाद परिवार के पलोनजी ग्रुप में 1991 में कार्य करना शुरू कर दिया था।
उन्हें 1994 में शापूरजी पलोनजी ग्रुप का निदेशक नियुक्त भी किया गया है । साइरस के नेतृत्व में उनकी कंपनी ने इंडिया में कई बड़े रिकॉर्ड बना लिए, इनमें सबसे ऊंचे रिहायशी टॉवर का निर्माण, सबसे लंबे रेल पुल का निर्माण और सबसे बड़े बंदरगाह का निर्माण शामिल है।
वहीं टाटा संस के बोर्ड में साइरस मिस्त्री ने 2006 में एंट्री की। वर्ष 2012 के दिसंबर महीने में उन्होंने टाटा संस के चेयरमैन के तौर पर कमा संभाली।
टाटा ग्रुप में योगदान
लंबे समय तक टाटा ग्रुप का फोकस बिजनेस-टू-कंज्यूमर की जगह बिजनेस-टू-बिजनेस पर था।
इंडस्ट्री के बी-टू-बी पर फोकस आम बात थी, जबकि टाटा ग्रुप की कई कंपनियों का कारोबार सीधे कंज्यूमर से जुड़ा है।
इनमें टाटा कंज्यूमर्स, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाइटन, इंडियन होटल्स जैसी दिग्गज कंपनियां शामिल हैं।
टाटा ग्रुप का चेयरमैन रहने के दौरान साइरस ने उन्होंने कंज्यूमर को लेकर इस समूह की रणनीति में बदलाव के लिए कई कदम उठाए।
उन्होंने कंज्यूमर पर फोकस बढ़ाने की पॉलिसी अपनाई। उनका जोर कंज्यूमर की जरूरतें बेहतर तरीके से समझने और उनकी शिकायतें दूर करने पर रहा। इस बारे में टाटा संस ग्रुप की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य हरीश भट्ट ने 2015 में एक इंटरव्यू में कहा था कि मिस्त्री के दिमाग में कंज्यूमर सबसे ऊपर है।
मिस्त्री ने टाटा ग्रुप की कंपनियों के सीईओ को कंज्यूमर के दिमाग को समझने और पढ़ने की सलाह दी थी। कंज्यूमर साइकोलॉजिस्ट किट यारो ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया है।
विवाद बगावत और कानूनी जंग
साल 2015 के बाद टाटा संस के चेयरमैन सायरस मिस्त्री और टाटा समूह के बीच सबकुछ बिगड़ने लगा था। कई ऐसे मौके आए जब समूह को लेकर रतन टाटा और सायरस मिस्त्री के विचार बेमेल खाते थे।
हालात इतने बिगड़े कि 2016 में शेयर होल्डर्स की वोटिंग के बाद सायरस मिस्त्री को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद टाटा संस का चेयरमैन एन चंद्रशेखरन को बनाया गया।
हालांकि, इस्तीफा के बाद सायरस ने अलग-अलग अदालतों में हक की लड़ाई लड़ी। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और यहां जीत टाटा ग्रुप की हुई।