नई दिल्ली। दक्षिण एशिया में गर्मी का मौसम लोगों को हद से ज्यादा परेशान करने लगा है। पूरे अप्रैल माह में ही दक्षिण एशिया खास कर भारत और पाकिस्तान में लोग 40-50 डिग्री सेल्सियस की गर्मी झेल रहे हैं। आने वाले दिनों में भी इससे राहत नहीं मिलेगी। स्कॉटलैंड के मौसम विज्ञानी स्कॉट डंकन ने इसकी चेतावनी दी है। ट्विटर पर शेयर एक थ्रेड में उन्होंने लिखा कि खतरनाक और झुलसाने वाली गर्मी भारत और पाकिस्तान की ओर बढ़ रही है।
स्कॉट डंकन ने लिखा, ‘मई में तापमान रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ेगा। उच्चतम तापमान के 45 डिग्री सेल्सियस से आगे तक पहुंचने की उम्मीद है। पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। यह गर्मी काफी पहले शुरू हो गई थी…मार्च की शुरुआत से ही।’ स्कॉट ने मार्च 2022 का एक ग्राफिक्स शेयर किया और कहा कि आप देख सकते हैं कि मार्च के महीने में दुनिया के इस हिस्से में कितनी बेरहमी से गर्मी पड़ रही है।
200 साल में कितना बढ़ा भारत-पाकिस्तान का तापमान
उन्होंने बर्कले अर्थ के डेटा के हवाले से बताया कि कैसे 19वीं शताब्दी के बाद से भारत और पाकिस्तान के तापमान में बदलाव आया है। उन्होंने लिखा, ‘जैसे-जैसे हमारा ग्रह गर्म होता है, हीटवेव और ज्यादा ताकतवर हो जाती हैं। गर्मी के खतरनाक स्तर साल के ज्यादातर समय में देखे जा सकते हैं।’ विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने जनवरी में घोषणा की थी कि साल 2021 तापमान का रिकार्ड रखे जाने के बाद से ग्रह के सात सबसे गर्म वर्षों में से एक था।
ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने का रास्ता लंबा
औसत वैश्विक तापमान में हर साल लगभग 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो रही है। 2020 में महामारी से थोड़ी गिरावट के बाद 2021 में वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन लगभग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए हमें एक लंबा रास्ता तय करना होगा। ग्रह के और अधिक ताप को कम करने के लिए तेजी से डीकार्बोनाइजेशन की आवश्यकता है। सबसे खतरनाक जलवायु परिवर्तन प्रभावों से बचने के लिए अभी देर नहीं हुई है।
लेखक मुकेश नेमा इस मुद्दे पर लिखते हैं- इन दिनों पूरा देश झुलस रहा है गर्मी से ! पर यह सब ऐसे ही नहीं हुआ अचानक ! ऐसा भी नहीं हुआ है कि सूरज ज़्यादा तपने लगा है ,और न ही धरती और हिंदुस्तान उसके पड़ोस में रहने चला गया है ! दरअसल हमें न अपनी मरती नदियों की परवाह है न कटते जंगलों की ! हमें पता ही नहीं कि कब हमारी सारी नदियाँ ,तालाब ,पोखर ,जंगल ,हरे खेत ,हरियाली हमारी ज़िंदगी से विदा हो चुके ! उनमें से अधिकांश जा चुके ,शेष भी अगले कुछ बरसों में क़िस्से कहानियों की बातें हो जायेगे !
हम में से कोई भी अपने शहर क़स्बे और गाँव के नज़दीक बहती नदी के नाले में बदल जाने पर दुखी नहीं हुआ ! आसपास के जंगल कटते रहे ,धरती का सीना छलनी होता रहा ,हमारे पहाड़ टूटते दरकते रहे !
हमने ,हम में से किसी ने कभी प्रतिरोध नहीं किया इसका ! ज़ाहिर है जो रह गयी है नदियाँ वो भी नक़्शों भर में दिखेंगीं फिर ,और जंगली जानवर बस टीवी स्क्रीन पर होंगे ,जंगलों और खेतों की जगह भूतिया इमारतें खड़ी होगी और साफ़ हवा और बूँद बूँद पानी के लिये तरसते ,हमारे बच्चे ऑक्सीजन मॉस्क लगाये ,हमें लानत भेजते ,घर में दुबके मिलेंगे !
ऐसे हालत इसलिये बने क्योंकि हम इस धरती पर जन्मी सबसे लालची पीढ़ी है ,हम यह भूल गये कि हम प्राकृतिक संसाधनों के मालिक नही ,इनके ट्रस्ट्री भर है और हमें इन्हें सही सलामत अगली पीढ़ी के हाथों सौंप कर जाना है ! हमने तिरस्कार किया प्रकृति का और विनाशकारी पर्यावरणीय असंतुलन को निमंत्रण दे बैठे !
यह इसलिये भी हुआ क्योकि हम बतौर समाज विफल हो चुके ,हम अपनी ज़िंदगी के असली मुद्दे भुला बैठे है ! हमें पता ही नहीं कि हमें चाहिये क्या ! पूरा देश ऐसे निरर्थक,बंजर मुद्दों पर बहस कर रहा है जो कड़वाहट भरे हैं ,और हम अब गर्व के उस जहर की खेती कर रहे हैं जो हमारे बच्चों को बेमौत मार देगा !
हम ऐसे हमेशा से नहीं थे ,कभी हमारी जीवन शैली ,हमारे आचरण ,हमारे धार्मिक अनुष्ठानों और परम्पराओं में तालाब ,बावड़ियाँ,नदियाँ और जंगल देवताओं की तरह आदरणीय हुआ करते थे ! उनसे सहजीविता के सिद्धांत का पूरी निष्ठा से पालन करता था समाज ! पर फिर वे हमारी प्राथमिकताओं से ,हमारे विचारों से दूर होते चले गये ! बदल चुके हम लोग ,क्यों और किसके फ़ायदे के लिये बदले ये बात हमारे दिमाग़ में इसलिये नहीं आती क्योंकि हमें कुछ और सोचने के लिये सप्रयास तैयार किया गया है !
ख़ैर ! छोड़िये इसे ! ऐसी बकवास आपका वक्त बर्बाद ही करेगी ! बेसिरपैर के मुद्दों पर गर्व करने का समय है ये ! यह वक्त है उन मुद्दों की वजह से अपने ही लोगों से घृणा करने का ! यही करते रहें हम ! इसलिये भी कि क्योंकि हम और कुछ कर भी नहीं सकते !