राजा भृर्तृहरि के ऐतिहासिक कथा ल छत्तीसगढ़ी के लोक विधा
म पिरो के भरथरी गायन के परंपरा विकसित करे गे हवय
विशेष लेख/सुशील भोले
छत्तीसगढ़ म अइसन कई ठन लोक गाथा गायन के परंपरा हे, जेन कोनो न कोनो ऐतिहासिक पात्र मन ऊपर आधारित ग्रंथ या धर्मग्रंथ के मानक म गाये जाथे. फेर ए ह शास्त्र ले लोक के कंठ म आवत-आवत अपन एक अलगेच स्वरूप धारण कर लेथे. इहाँ के पंडवानी गायन विधा ल देख लेवौ, मूल रूप ले वो ह महाभारत के प्रमुख पात्र पांडव मन ऊपर आधारित हे. फेर ए विधा के प्रवर्तक नारायण प्रसाद वर्मा ह एला छत्तीसगढ़ी लोक गीत अउ संगीत मन संग समो के सबल सिंह चौहान के लिखे किताब ल एक अलगेच विधा के रूप म विकसित कर दिस. ठउका अइसनेच राजा भृर्तृहरि के ऐतिहासिक कथा ल छत्तीसगढ़ी के लोक विधा म पिरो के भरथरी गायन के परंपरा विकसित करे गे हवय.
रायपुर के मोती बाग म पहिली हर बछर ‘जगार’ कार्यक्रम के आयोजन होवय. इहें मैं सबले पहिली सुरूज बाई खांडे के भरथरी गायन के प्रस्तुति देखे रेहेंव. तब ओकर संग मुंहाचाही घलो करे रेहेंव. तब वोमन बताए रिहिन हें, के एकर कथा ल ओमन अपन बबा (नाना) जगा सुने रिहिन हें. सुरूज बाई बताए रिहिन हें- मैं पढ़े लिखे तो नइ हौं, फेर मोर नाना ह जेन बतावय अउ सिखोवय तेन मोला कंठस्थ हो जावत रिहिसे.
आगू चलके रेखादेवी जलक्षत्री अउ सफरी मरकाम ल घलो भरथरी गायन करत सुनेंव. रेखादेवी जलक्षत्री अउ मोर गाँव तो आपस म जुड़े हे. हमर मनके एक-दूसर के घर घलो आना-जाना होवत रहिथे. रेखा घलो अइसने बताए रिहिसे, के सिरिफ सुन-सुन के ही ए गायन विधा ल सीखे हावय. एकरे सेती उन सबो के गायन म लगभग एके असन शैली अउ शब्द देखे बर मिलथे-
घोड़ा रोवय घोड़ेसार म, घोड़ेसार म वो,
हाथी रोवय हाथीसार म
मोर रानी ये वो, महलों म रोवय
मोर रानी ये या, महलों म रोवय
एदे धरती म दिए लोटाए वो, ये लोटाए वो, भाई येदे जी…
सुन लेबे नारी ये बाते ल, मोर बाते ल या, का तो जवानी ये दिए हे
भगवाने ह वो, मोर कर्मे म न
भगवाने ह या, मोर कर्मे म न
येदे काये जोनी मोला दिए हे, येदे दिए हे, भाई येदे जी…
भरथरी के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे म बताए जाथे, के परमार वंश के महान सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भृर्तृहरि ह ए गाथा के मुख्य पात्र आय. एला संस्कृत के महान कवि भर्तृहरि घलो माने जाथे. अइसे बताए जाथे, के भरथरी कथा ह बिहार, उत्तर प्रदेश अउ बंगाल म पहिलिच ले प्रचलित रिहिसे, उही मन डहार ले होवत ए ह छत्तीसगढ़ आए हे. बताए जाथे, पहिली बंगाल के जोगी मन उज्जैन आवत-जावत राहंय.
छत्तीसगढ़ एकर मनके बीच म परय, तेकर सेती वोमन इहाँ ले नहाक के ही आवयं-जावयं, इही यात्रा के खातिर ए ह छत्तीसगढ़ म घलो अपन बसेरा बना डारिस. वइसे भरथरी के इहाँ आए अउ एकर कथा प्रसंग के संबंध म अलग-अलग विद्वान मन के अलग-अलग विचार हे.
भरथरी एक अइसन चरित्र आय, जेकर संबंध म बहुत अकन किंवदंती घलो हे. भरथरी योगी कइसे बनीस? वो तो उज्जैन के राजा रिहिसे. फेर वो राजकाज ल छोड़ के काबर चल दिस? अलग-अलग कहानी हे. फेर आखिर म गोरखनाथ जी के किरपा ले सब ठीक हो जाथे. तब भरथरी ह गोरखनाथ के चेला बन जाथे. एकरे सेती एकर एक लोक प्रचलित नांव बाबा भरथरी घलो हे.
छत्तीसगढ़ म भरथरी गायन के क्षेत्र म वइसे तो बहुत झन आवत रेहे हें, फेर जेन लोकप्रियता अउ ऊंचाई सुरूज बाई खांडे ल मिलिस, अभी तक अउ दूसर मनला नइ मिल पाए हे.
सुरूज बाई खाडे के जनम 12 जून 1949 के बिलासपुर जिला के एक ग्रामीण परिवार म होए रिहिसे. जब वो सात बछर के होइस, तभेच ले अपन बबा (नाना) रामसाय घृतलहरे के मार्गदर्शन म गाए ले धर लिए रिहिसे. वोहर अपन नाना जगा ले भरथरी के संगे-संग ढोला-मारू, चंदैनी जइसन लोक गाथा मनला घलो सीखे रिहिसे.
पहली बेर उनला रतनपुर मेला म गाये के मौका मिले रिहिसे, फेर रूस म सन् 1986-87 म होए ‘भारत महोत्सव’ म उनला विशेष चिन्हारी अउ प्रसिद्धि मिलिस. रूस के छोड़े करीब 18 अउ देश मनमा वोमन अपन कला के डंका बजाए रिहिन हें. जेकर सेती उनला दाऊ रामचंद्र देशमुख अउ स्व. देवदास बंजारे स्मृति सम्मान मिले रिहिसे. वोमन ल मध्यप्रदेश शासन के देवी अहिल्या बाई सम्मान घलो मिले रिहिसे. 10 मार्च 2018 म वोमन ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले लिए रिहिन हें.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811