सीमावर्ती जिलों के ग्रामों में अस्थायी चेकपोस्ट एवं गोट-पाक्स का
टीकाकरण कार्यक्रम संचालित,पशु हाट-बाजारों पर अस्थायी रोक
रायपुर। हाल ही में भारत के कुछ राज्यों में पशुओं में गांठदार त्वचा रोग (लम्पीस्कीन रोग) के लक्षण देखने को मिले हैं। यह रोग गौवंशी तथा भैंसवंशी पशुओं में गाँठदार त्वचा रोग वायरस के संक्रमण के कारण होता है। इस रोग का मुख्य वाहक मच्छर, मक्खी एवं किलनी हैं, जिसके माध्यम से स्वस्थ पशुओं में यह संक्रमण फैलता है।
वर्तमान में प्रदेश में इस रोग के कोई भी लक्षण नहीं पाये गये है। एहतियात के तौर पर जिलों मे कलेक्टर द्वारा पशु हाट-बाजारों के आयोजन पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी गई है।
साथ ही विभाग द्वारा सुरक्षा के दृष्टिकोण से प्रदेश के सीमावर्ती जिलों के ग्रामो मे अस्थायी रूप मे चेकपोस्ट बनाया गया है, ताकि पड़ोसी राज्यों से प्रवेश करने वाले पशुओं को रोका जा सके।
पशुधन विकास विभाग द्वारा सीमावर्ती ग्रामों में पशुओं को इस रोग के संक्रमण से बचाने हेतु गोट-पाक्स वैक्सीन से प्रतिबंधात्मक टीकाकरण किया जा रहा है। सीमावर्ती ग्रामों में इस रोग के लक्षण एवं रोकथाम के उपाय से अवगत कराये जाने हेतु के पशुपालकों में जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है।
पर्याप्त मात्रा मे औषधियों की व्यवस्था क्षेत्रीय संस्थाओं में
इस रोग के निगरानी हेतु विभागीय अमलों को ग्रामों मे सतत् भ्रमण कर पशुपालकों से निरंतर संपर्क किये जाने हेतु निर्देशित किया गया है, तथा पशुओं के रोगग्रस्त होने की स्थिति मे तत्काल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने हेतु पर्याप्त मात्रा मे औषधियों की व्यवस्था क्षेत्रीय संस्थाओं में की गई है।
इसके अतिरिक्त विषम परिस्थिति से निपटने के लिये जिलों में पर्याप्त बजट उपलब्ध करा दी गई है, ताकि टीकाद्रव्य एवं अन्य सामग्री समय पर क्रय कर अन्य ग्रामों के पशुओं मे प्रतिबंधात्मक टीकाकरण का कार्य त्वरित रूप से किया जा सके। पशुओं के आवास में जीवाणुनाशक दवा का छिड़काव एवं पशुओं मे जू कीलनीनाशक दवा का छिड़काव हेतु सलाह दी गई है, ताकि इस रोग के मुख्य वाहकों पर नियंत्रण पा सकें।
गौरतलब है कि लम्पी स्कीन से रोगग्रस्त पशुओं में 02 से 03 दिन तक मध्यम बुखार के लक्षण मिलता है, इसके बाद प्रभावित पशुओं की चमड़ी मे गोल-गोल गांठें परिलक्षित होते है। लगातार बुखार होने के कारण पशुओं के खुराक पर विपरित प्रभाव पड़ता है, जिसके वजह से दुधारू पशुओं में दुग्ध उत्पादन एवं भारसाधक पशुओं की कार्यक्षमता कम हो जाती है। रोगग्रस्त पशु दो से तीन सप्ताह मे स्वस्थ हो जाते है, परंतु शारीरिक दुर्बलता के कारण दुग्ध उत्पादन कई सप्ताह तक प्रभावित होता है।
पशु चिकित्सा विभाग का अमला पशुपालकों
को संक्रमण के रोकथाम के बता रहा उपाय
राज्य में पशुओं के लंपी स्किन रोग का अभी तक कोई भी मामला सामने नहीं आया है। लंपी स्किन रोग की आशंका को देखते हुए पशु चिकित्सा विभाग का मैदानी अमला बीते एक महीने से अलर्ट मोड में है और वह गांवों का निरन्तर भ्रमण कर पशुओं को लम्पी रोग से बचाव के उपाय पशु पालकों बता रहा है।
पशुओं में लम्पी स्कीन रोग का मामला देश के राजस्थान, गुजरात सहित अन्य राज्यों में प्रकाश में आते ही छत्तीसगढ़ में पशुओं को इस रोग से बचाने के लिए संचालक पशु चिकित्सा सेवाएं ने अगस्त माह पहले सप्ताह में ही गाईड लाईन जारी कर विशेष सावधानी बरतने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए थे।
छत्तीसगढ़ राज्य के 18 जिलों की सीमाए अन्य राज्यों से जुड़ी हुई है,जहां से बीमार पशुओं के आवागमन की संभावना को देखते हुए सीमावर्ती ग्रामों में पर चेक पोस्ट लगाकर नियमित चेकिंग में निगरानी रखी जा रही है। इन गांवों में पशु मेला को प्रतिबंधित करने के साथ ही बिचौलियों पर भी निगरानी रखी जा रही है।
रोग के लक्षण मिले तो तत्काल संपर्क करें चिकित्सक से
गौरतलब है कि लम्पी स्कीन डिसिज गौवंशीय एवं भैसवंशीय पशुओं में फैलने वाला विषाणुजनित संक्रामक रोग है। इस रोग का मुख्य वाहक मच्छर, मक्खी एवं किलनी है, जिसके माध्यम से स्वस्थ पशुओं में यह संक्रमण फैलता है।रोगग्रस्त पशुओं में 02 से 03 दिन तक मध्यम बुखार का लक्षण मिलता है. इसके बाद प्रभावित पशुओं की चमडी मे गोल-गोल गांठें उभर आती है। लगातार बुखार होने के कारण पशुओं के खुराक पर विपरित प्रभाव पड़ता है, जिसके वजह से दुधारू पशुओं में दुग्ध उत्पादन एवं भारसाधक पशुओं की कार्यक्षमता कम हो जाती है।
रोगग्रस्त पशु दो से तीन सप्ताह में स्वस्थ हो जाते है. परंतु शारिरिक दुर्बलता के कारण दुग्ध उत्पादन कई सप्ताह तक प्रभावित होता है। इस रोग से 10 से 20 प्रतिशत पशु प्रभावित होते हैं. जिसमे से 01 से 05 प्रतिशत तक के पशुओं की मृत्यु संभावित है।
वर्तमान में प्रदेश मे इस रोग के लक्षण नहीं पाये गये है। एहतियात के तौर पर जिलों मे पशु हाट-बाजारों का आयोजन पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी गई है। सुरक्षा के दृष्टिकोण से प्रदेश के सीमावर्ती जिलों के ग्रामों में अस्थायी रूप में चेकपोस्ट बनाया गया है, ताकि पड़ोसी राज्यों से प्रवेश करने वाले पशुओं को रोका जा सके।
सीमावर्ती ग्रामों मे पशुओं को इस रोग के सक्रमण से बचाने हेतु गोट-पास्क वैक्सीन द्वारा प्रतिबंधात्मक टीकाकरण किया जा रहा है। इस रोग से पशुओं के रोगग्रस्त होने की स्थिति में तत्काल चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने हेतु पर्याप्त मात्रा मे औषधियों की व्यवस्था क्षेत्रीय संस्थाओं मे की गई है। इसके अतिरिक्त विषम परिस्थिति से निपटने के लिये जिलों में पर्याप्त बजट उपलब्ध कराया गया है. ताकि टीकादव्य समय पर क्रय कर अन्य ग्रामों के पशुओं मे प्रतिबंधात्मक टीकाकरण का कार्य तेजी से किया जा सके। पशुओं के आवास में जीवाणु नाशक दवा का छिड़काव एवं पशुओं में जू- कॉलनीनाशक दवा का छिड़काव हेतु सलाह दी गई है ताकि इस रोग पर नियंत्रण रखा जा सके।