आज जन्मदिन:- संवेदनाओं को परदे पर जीने वाली अभिनेत्री
स्मिता पाटिल ने 10 साल के करियर में दी बेमिसाल फिल्में
मुंबई। महाराष्ट्र के एक बड़े राजनीतिज्ञ की बेटी, दूरदर्शन की समाचार वाचिका के बाद बड़े परदे का रुख करने वाली संवेदनशील अदाकारा स्मिता पाटिल का फिल्मी करियर बहुत छोटा महज 10 साल का रहा। लेकिन इस दौरान उन्होंने काम ऐसा किया कि आज भी वो चर्चा में रहता है।
स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्तूबर 1955 को पुणे (महाराष्ट्र) के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ शिवाजीराव गिरधर पाटिल और सामाजिक कार्यकर्ता विद्याताई पाटिल के यहाँ कुनबी मराठा परिवार में हुआ था। उन्होंने पुणे के रेणुका स्वरुप मेमोरियल हाई स्कूल से पढाई पूरी की। उन्होंने पहली बार 1980 के दशक में दूरदर्शन मुंबई की समाचार वाचिका के रूप में कैमरे का सामना किया।
उनका नाम रखे जाने के पीछे भी बेहद दिलचस्प तथ्य जुड़ा है। असल में जन्म के समय उनके चेहरे पर मुस्कराहट देख कर उनकी माँ विद्या ने उनका नाम स्मिता रख दिया। हालांकि इसे दुर्योग कहें या संजोग कि असमय मृत्यु का शिकार हुई स्मिता के चेहरे पर आखिरी वक्त में ढेर सारा दर्द था, जो उन्हें उनके अपनों ने दिए थे।
उन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास था, इसलिए उन्होंने पहले ही अपने मेकअप मैन दीपक सावंत व परिजनों को कह दिया था कि आखिरी वक्त में उन्हें दुल्हन बना कर विदा किया जाए और हुआ भी यही। जब बेटे को जन्म देने के बाद की शारीरिक जटिलताओं की वजह से 13 दिसंबर 1986 को स्मिता पाटिल का निधन हुआ तो उन्हें दुल्हन की तरह सजाकर अंतिम विदाई दी गई और उस वक्त उनके शांत चेहरे पर दर्द की गवाही थी।
आईए, अब स्मिता पाटिल की फिल्मों में निभाई कुछ सशक्त भूमिकाओं के बारे में जान लेते हैं। सन 1975 में श्याम बेनेगल की “निशांत” से फ़िल्मी करियर की शुरूवात करने वाली स्मिता 1976 में “मंथन” और 1977 में भूमिका से सशक्त अभिनेत्री के रूप में सामने आयी।
“भूमिका” के रोल के लिए उन्हें पहला राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिला। मराठी के प्रसिद्ध साहित्यकार जयवंत दलवी की कृति पर आधारित “चक्र” में अम्मा की भूमिका के लिए उन्हें दुबारा राष्ट्रीय पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।
“बाजार” में स्मिता ने एक मुस्लिम लडकी का किरदार निभाया , जो अपनी आँखों के सामने ही औरत के सौदा होने की गवाह बनी। वही जब्बार पटेल की “सुबह” में उन्होंने एक ऐसे अधिकारी की पत्नी का रोल अदा किया था जो पत्नी की गैर-मौजूदगी में एक दूसरी औरत से रिश्ता कायम कर लेता है।
“मंथन” में उन्होंने दलित महिला का रोल अदा करके एक मिसाल कायम की थी। सागर सरहदी की “तेरे शहर में” में उनका रोल उनकी इमेज से बिलकुल विपरीत था। रविन्द्र पीपट की “वारिस” में नि:संतान विधवा होने का रोल उन्होंने बखूबी अदा किया था। वही “भूमिका” में औरत के जटिल मनोविज्ञान को बड़े पर्दे पर साकार किया।
अस्सी के दशक में स्मिता पाटिल ने व्यावसायिक सिनेमा की ओर भी अपना रुख़ कर लिया। इस दौरान उन्हें सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के साथ “नमक हलाल” और “शक्ति” (1982) जैसी फ़िल्मों में काम करने का अवसर मिला, जिसकी सफलता ने स्मिता पाटिल को व्यावसायिक सिनेमा में भी स्थापित कर दिया।
अस्सी के दशक में स्मिता पाटिल ने व्यावसायिक सिनेमा के साथ-साथ समानांतर सिनेमा में भी अपना सामंजस्य बनाये रखा। इस दौरान उनकी ‘सुबह’ (1981), ‘बाज़ार’, ‘भींगी पलकें’, ‘अर्थ’ (1982), ‘अर्द्धसत्य’ और ‘मंडी’ (1983) जैसी कलात्मक फ़िल्में और ‘दर्द का रिश्ता’ (1982), ‘कसम पैदा करने वाले की’ (1984), ‘आखिर क्यों’, ‘ग़ुलामी’, ‘अमृत’ (1985), ‘नजराना’ और ‘डांस-डांस’ (1987) जैसी व्यावसायिक फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिसमें स्मिता पाटिल के अभिनय के विविध रूप दर्शकों को देखने को मिले। स्मिता ने जब्बार पटेल की ‘जैत रे जैत’ सहित कुछ मराठी फिल्मों में भी अभिनय किया। आज भी स्मिता पाटिल के सशक्त अभिनय के लिए याद की जाती है। वर्षो पहले स्मिता की मृत्यु से फ़िल्मी दुनिया में जो खालीपन आया था वह कभी नही भरा जा सकता।
परदे पर शांत-गंभीर लेकिन असल जिंदगी में शरारती थीं स्मिता
स्मिता पाटिल अपने गंभीर अभिनय के लिए जानी जाती हैं, लेकिन बहुत काम लोग जानते है कि फ़िल्मी परदे पर सहज और गंभीर दिखने वाली स्मिता पाटिल असल ज़िंदगी में बहुत शरारती थीं। स्मिता पाटिल की जीवनी लिखने वाली मैथिलि राव बताती हैं, वो निजी ज़िन्दगी में बहुत साधारण थीं। उनके अंदर ऐसी कोई चाहत नही थीं कि वो कोई बहुत बड़ी स्टार बनें। ज़िन्दगी के प्रति गंभीर होने के साथ साथ वो बहुत शरारती थीं, बहुत मस्ती करती थीं, उन्हें गाड़ी चलाने का बहुत शौक था। यही कारण है कि 14 -15 साल की उम्र में ही उन्होंने चुपके से ड्राइविंग सीख ली।
फ़िल्मों में आने से पहले स्मिता पाटिल बॉम्बे दूरदर्शन में मराठी में समाचार पढ़ा करती थीं। समाचार पढ़ने से पहले उनके लिए साड़ी पहनना ज़रूरी होता था और स्मिता को जीन्स पहनना अच्छा लगता था तो स्मिता अक्सर न्यूज़ पढ़ने से पहले जीन्स के ऊपर ही साड़ी लपेट लिया करती थीं।
ऐसे शुरू हुआ फिल्मी करियर स्मिता का
स्मिता के फ़िल्मी करियर की शुरुआत अरुण खोपकर की डिप्लोमा फ़िल्म से हुई, लेकिन मुख्यधारा के सिनेमा में स्मिता ने ‘चरणदास चोर’ से अपनी मौजूदगी दर्ज की। इसके निर्देशक श्याम बेनेगल बताते हैं, मैं अपनी फ़िल्म ‘निशांत’ के लिए एक नए चेहरे की तलाश में था। मेरे एक साउंड रिकार्डिस्ट हुआ करते थे हितेन्दर घोष वो स्मिता पाटिल के दोस्त थे। हितेन्दर घोष ने मुझे बताया उनकी एक दोस्त है स्मिता पाटिल। मैं उसके परिवार को जानता हूँ।
वो पुणे से हैं लेकिन फिलहाल बॉम्बे में हैं और अपने पिता के साथ आयीं हैं। उनके पिता उस समय महाराष्ट्र कैबिनेट में मंत्री थे। जब मैं स्मिता से मिला तो मैंने तय किया कि फ़िल्म ‘निशांत’ में कास्ट करने से पहले मैं स्मिता का एक छोटा सा ऑडिशन लेना चाहता हूँ और मैंने स्मिता को अपनी बाल फ़िल्म ‘चरणदास चोर’ में प्रिंसेस के रोल के लिए चुना। जब हम छत्तीसगढ़ में शूटिंग कर रहे थे तब मैंने पाया कि ये लड़की तो बहुत टैलेंटेड और इसमें भरपूर आत्मविश्वास है। तभी मैंने तय किया कि स्मिता ही मेरी फ़िल्म ‘निशांत’ में काम करेंगी।
दो राष्ट्रीय पुरस्कार मिले, ‘मिर्च मसाला’ के लिए तारीखें आगे बढ़ा दी दूसरी फिल्मों की
साल 1977 स्मिता पाटिल के लिए एक अहम पड़ाव साबित हुआ इसी साल उनकी फ़िल्म ‘भूमिका’ आई इस फ़िल्म के लिए स्मिता पाटिल को राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
‘भूमिका’ से स्मिता पाटिल का जो सफ़र शुरू हुआ वो ‘चक्र’, ‘निशांत’, ‘आक्रोश’, ‘गिद्ध’ और ‘मिर्च मसाला’ जैसी फ़िल्मों तक जारी रहा। 1981 में आई फ़िल्म ‘चक्र’ के लिए उन्हें एक बार फिर से नेशनल अवार्ड मिला। फ़िल्म ‘मिर्च मसाला’ उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई, लेकिन इस फ़िल्म में निभाये गए सोन बाई के क़िरदार को उनके बेहतरीन काम में से एक माना जाता है। इसी फ़िल्म ने निर्देशक केतन मेहता को अन्तरराष्ट्रीय ख्याति दिलवाई। केतन मेहता बताते हैं, ‘मिर्च मसाला’ मेरी तीसरी फ़िल्म थी और जब मुझे पता चला कि मेरी स्क्रिप्ट नेशनल फ़िल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन से अप्रूव्ड हो गई है तो मैं लोकेशन देखने गुजरात गया। उस फ़िल्म में मिर्च का एक अहम रोल है।
जब मैंने वहां जाकर देखा कि मिर्च का सीजन शुरू हो चुका है और ये सीज़न दो महीने बाद ख़त्म हो जाएगा तो मैं भाग कर बॉम्बे आया और स्मिता से मिला और ये सारी बातें उन्हें बताईं और कहा कि अगर हम चूके तो अगले साल तक के लिए करना होगा। स्मिता ने किसी भी तरह और फ़िल्मों की तारीखें आगे बढ़ा दी और इस फ़िल्म की शूटिंग शुरू की। सीन कुछ ऐसे थे कि एक मिर्च फैक्ट्री के अंदर कुछ औरतें काम करती हैं, गर्मी का मौसम था. धूप और गर्मी के बावजूद स्मिता ने बहुत ही स्पिरिट के साथ काम किया और यूनिट के दूसरे लोगों को भी प्रोत्साहित किया।
मधुर नहीं रहे राज के साथ संबंध, मां से खराब हुआ रिश्ता
स्मिता पाटिल को जहां उनके किरदारों के लिए सराहा गया वहीं दूसरी तरफ़ एक्टर और पॉलिटिशियन राज बब्बर से जुड़े उनके सम्बन्ध को लेकर उनकी आलोचना भी की गई। उनके बारे में लोगों ने कहा कि उन्होंने राज बब्बर और नादिरा बब्बर की शादी तुड़वा दी। लेखिका मैथिलि राव इस पर कहती हैं, स्मिता पाटिल की माँ स्मिता और राज बब्बर के रिश्ते के ख़िलाफ़ थीं। वो कहती थीं कि महिलाओं के अधिकार के लिए लड़ने वाली स्मिता किसी और का घर कैसे तोड़ सकती है। स्मिता के लिए उनकी माँ रोल मॉडल थीं. उनकी ज़िन्दगी में माँ फैसला बहुत मायने रखता था। लेकिन राज बब्बर से अपने रिश्ते को लेकर स्मिता ने माँ की भी नहीं सुनी। उनकी माँ इस बात का दुःख था कि आखिरी समय में उनका रिश्ता अपनी बेटी से ख़राब हो गया।
आकस्मिक मौत से हैरान रह गए सभी, तोड़ने वाली थी राज से रिश्ता
बेटे प्रतीक के जन्म के कुछ दिनों बाद 13 दिसंबर 1986 को स्मिता का निधन हो गया था। लेखिका मैथिलि राव कहती हैं, स्मिता को वायरल इन्फेक्शन की वजह से ब्रेन इन्फेक्शन हुआ था। प्रतीक के पैदा होने के बाद वो घर आ गई थीं। वो बहुत जल्द हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार नहीं होती थीं, कहती थीं कि मैं अपने बेटे को छोड़कर हॉस्पिटल नही जाऊंगी। लेकिन जब ये इन्फेक्शन बहुत बढ़ गया तो उन्हें जसलोक हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। स्मिता के अंग एक के बाद एक फ़ेल होते चले गए।
हालांकि राजबब्बर के साथ रिश्ता भी कुछ बहुत सहज नहीं रह गया था। स्मिता अपने आखिरी दिनों में बहुत अकेला महसूस करती थीं राज बब्बर जब हॉस्पिटल में पहुंचे, उस वक़्त तक स्मिता ने ये फैसला कर लिया था की वो राज बब्बर से रिश्ता तोड़ लेंगी। अपनी किताब लिखते हुए मैथिलि राव को पता लगा की राज बब्बर और स्मिता लिव इन रिलेशनशिप में हैं और राज बब्बर कहते थे कि वो अपनी पत्नी को तलाक़ देकर स्मिता से शादी कर लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और स्मिता को वो धीरे धीरे अपने फ्रेंड सर्किल से भी दूर रखने लगे थे।
पूरी की गई आखिरी इच्छा, दुल्हन की तरह सजाया गया
स्मिता पाटिल की एक आखिरी इच्छा थी। उनके मेक अप आर्टिस्ट दीपक सावंत बताते हैं, स्मिता कहा करती थीं कि दीपक जब मर जाउंगी तो मुझे सुहागन की तरह तैयार करना। एक बार उन्होंने राज कुमार को एक फ़िल्म में लेटकर मेकअप कराते हुए देखा और मुझे कहने लगीं कि दीपक मेरा इसी तरह से मेकअप करो और मैंने कहा कि मैडम मुझसे ये नहीं होगा।
ऐसा लगेगा जैसे किसी मुर्दे का मेकअप कर रहे हैं। ये बहुत दुखद है कि एक दिन मैंने उनका ऐसे ही मेकअप किया। शायद ही दुनिया में ऐसा कोई मेकअप आर्टिस्ट होगा जिसने इस तरह से मेकअप किया हो। मरने के बाद उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक़, स्मिता के शव का सुहागन की तरह मेकअप किया गया।