आज महान क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती
तारीख 26 अक्तूबर 1890 जगह यूपी का इलाहाबाद। जयनारायण जो कि पेशे से एक शिक्षक थे उनके के घर जन्में गणेश शंकर बिद्यार्थी,शुरुआत से साम्प्रदायिक सोच के घोर आलोचक रहे हैं, हिंदू मुस्लिम भाईचारा के प्रखर समर्थक, स्वतंत्रसेनानी एक लेखक एक जादूगर कलम के जादूगर।
गणेश की आरंभ में शिक्षा अँग्रेज़ी और उर्दू भाषाओं में हुई, 1905 में उन्होंने हाई स्कूल पास किया ,1907 मे प्राइवेट परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने इलाहाबाद में दाखिला लिया यहीं इनका झुकाव लेखनी और अग्रसर हो गया। लेखनी में उनको बहुत से मौके मिले लेकिन इन्होंने हमेशा स्वतंत्र लेखनी हेतु मार्ग ही चुना।
1913 कानपुर पहुच के गणेश ने खुद की पत्रकारिता (प्रताप) नाम से निकाली, उसमें उन्होंने अपनी जादुई कलम से किसानों, मजदूरों,गरीबों मज़लूमों का दुःख दर्द बयान किया, जिसके कारण अँग्रेज़ी हुकूमत ने उनके ऊपर भारी मुकदमें लगाए, जेल भेजा लेकिन इसके बाबजुद गणेश शंकर ने अपनी कलम की ताकत नहीं रोकी। लगातार अपनी कलम से अँग्रेज़ी हुकूमत की बुनियाद हिलाते रहे।
1916 में इनकी मुलाक़ात महात्मा गांधी से हुई, गांधी से प्रभावित होके गणेश शंकर पूर्ण रूप से आज़ादी के आंदोलन में सम्मलित हो गए। 1920 में करीब उन्होंने प्रताप में रोजाना लेख लिख के लिख के अँग्रेज़ी हुकूमत के नाक में दम कर दिया, जिससे आहत होके अँग्रेज़ी सरकार ने उन्हें दो साल की कड़ी कारावास की सज़ा सुनाई
1922 में बाहर आते ही अँग्रेज़ी हुकूमत ने इन्हें गलत इल्ज़ाम में बापस अंदर कर दिया,तब तक इनका स्वास्थ भी खराब होने लगा, ये बीमार रहने लगें
1925 कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन और बिधानसभा प्रमुख बने 1929 में प्रमुख पद से त्यागपत्र दे दिया।
उसी साल 1929 में उन्हें यूपी काँग्रेस समिति का अध्यक्ष चुना गया 1930 में कलम के जादूगर को दुबारा गिरफ्तार किया गया, 1931 में गांधी इरविन समझौते के अंतर्गत उन्हें दुबारा रिहा किया गया।
उसी साल 1931 में कानपुर में हिंदू मुस्लिम दंगे भड़क गए, दोनों ही सम्प्रदाय एक दूसरे के खून के प्यासे थे, ये सब देख कर जादूगर गणेश शंकर से बैठा नहीं गया, वो आजीवन घोर सम्प्रदायिक के बिरोधी थे, बाहर निकल के दंगाई को रोकने का प्रयास किया, हज़ारों जान बचाई, लेकिन दुर्भाग्य से खुद दंगाई के बीच फस गए, और दंगे की भेंट चढ़ गई, दंगे खत्म होने के बाद इनको बहुत ढूंढा गया, ये कही नही मिले, आखिर में मिले तो एक अस्पताल में जहाँ लाशों के ऊपर लाश दबी पड़ी थी, उन्ही के बीच फसे थे,इनकी लाश इतनी फूल गई कि पहचान मुश्किल थी
25 मार्च 1931 में गणेश शंकर हमारे बीच नहीं रहे, आजीवन अहिंसा के पक्षदार महात्मा के अनुयायियों में से एक प्रखर स्वतंत्रसेनानी एक जादूगर कलम का जादूगर हमें बीच मझदार में छोड़ गए , आज के पत्रकारिता जगत को उनकी कमी अधिक खलती हैं, आज मौजूदा चौथा स्तंभकार पत्रकार कम चाटूकार ज्यादा प्रतीत हो रहा, कम से कम इन्हें गणेश शंकर से सीखने की ज़रूरत हैं।
अपनी धारदार लेखनी से अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ लोगों की आवाज़ बुलंद करने वाले निडर व निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी एवं पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी जी की जयंती पर कोटिशः नमन। pic.twitter.com/rJjTgzrlJV
— Congress (@INCIndia) October 26, 2022