राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर देश याद कर रहा
भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद को
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का वास्तविक नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था। लेकिन इन्हें मौलाना आजाद नाम से ही ज्यादा पहचान मिली। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के समय मौलाना आजाद मुख्य सेनानी में से एक थे।
मौलाना आजाद एक वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न एक राजनेता और साहित्यकार थे। आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए इन्होने अपने पेशेवर काम को भी छोड़ दिया, और देशभक्ति के चलते देश की आजादी के लिए बाकि लोगों के साथ काम करने लगे। मौलाना आजाद, गाँधी जी के अनुयायी थे, उन्होंने गाँधी जी के साथ अहिंसा का साथ देते हुए, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ के हिस्सा लिया था।
बाकि मुसलमान लीडर जैसे मोहम्मद अली जिन्ना आदि से अलग, मौलाना आजाद भारत देश की स्वतंत्रता को सांप्रदायिक स्वतंत्रता से बढ़ कर मानते थे। उन्होंने धार्मिक सद्भाव के लिए काम किया है और देश विभाजन के कट्टर प्रतिद्वंद्वी भी थे।
मौलाना आजाद ने लम्बे समय तक भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी, साथ ही भारत पाकिस्तान विभाजन के गवाह बने। लेकिन एक सच्चे भारतीय होने के कारण उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत में रहकर इसके विकास में कार्य किया और पहले शिक्षा मंत्री बन, देश की शिक्षा पद्धति सुधारने का ज़िम्मा उठाया।
मौलाना आजाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। इनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन बहुत बड़े विद्वान थे। जबकि इनकी माता अरब की थी, जो शेख मोहम्मद ज़हर वात्री की बेटी थी, जो मदीना में एक मौलवी थे। जिनका नाम अरब के अलावा बाहरी देशों में भी हुआ करता था।
On his birth anniversary, we pay homage to Maulana Abul Kalam Azad.
The youngest President of INC, First Minister of Education & a Gandhian, he made sure that India walks on a path of equal, accessible & quality education to all. pic.twitter.com/sTf8MyuG5I
— Congress (@INCIndia) November 11, 2022
मौलाना खैरुद्दीन अपने परिवार के साथ बंगाल राज्य में रहा करते थे, लेकिन 1857 के समय हुई विद्रोह की लड़ाई में उन्हें भारत देश छोड़ कर अरब जाना पड़ा, जहाँ मौलाना आजाद का जन्म हुआ। मौलाना आजाद जब 2 वर्ष के थे, तब 1890 में उनका परिवार वापस भारत आ गया और कलकत्ता में बस गया। 13 साल की उम्र में मौलाना आजाद की शादी जुलेखा बेगम से हो गई।
Remembering the great freedom fighter, scholar and India’s first Education Minister, Bharat Ratna, Maulana Abul Kalam Azad, on his birth anniversary today.
His vision for building India’s education system gave us many world class institutions. He remains our inspiration. pic.twitter.com/NNhC2hwzge
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 11, 2022
बाद के दौर में मौलाना आजाद ने स्वतंत्रता आंदोलन में पूरी सक्रियता से भाग लिया। अखिल भारतीय कांग्रेस के वह अध्यक्ष भी रहे। स्वतंत्र भारत में देश के प्रथम शिक्षा मंत्री की जवाबदारी दी गई। पद पर रहते हुए ही 22 फ़रवरी 1958 को स्ट्रोक के चलते मौलाना आजाद की अचानक दिल्ली में मृत्यु हो गई।
सन 2008 से भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिवस 11 नवम्बर को वैधानिक रूप से शिक्षा दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। अबुल कलाम आजाद स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद थे। वे भारत के पहले शिक्षामंत्री (1947 से 1958) थे।
उन्होंने 1912 में उन्होंने उर्दू में सप्ताकि अखबार ‘अल-हिलाल’ निकाला था ताकि इसके जरिये युवाओं को क्रांति के लिए जोड़ा जा सके। उनके महती योगदान के लिए 1992 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
उन्हें आरंभिक शिक्षा घर पर ही मिली। इस्लामी शिक्षा के अलावा उन्हें दर्शनशास्त्र, इतिहास और गणित की शिक्षा भी ग्रहण की। मौलाना आज़ाद उर्दू, फारसी, हिन्दी, अरबी और अंग्रेजी़ भाषाओं में भी निपुण थे। सोलह साल में ही उन्होंने शिक्षा में वह सब हासिल कर लिया जो 25 साल में मिलती थी। वे देवबन्दी विचारधारा के समर्थक थे।
“I am part of the indivisible unity that is Indian nationality. I am indispensable to this noble edifice and without me this splendid structure is incomplete”
— Maulana Abul Kalam Azad
The contribution of Maulana Azad in nation building is ever inspiring.#NationalEducationDay pic.twitter.com/1CnaiAi4Qy
— Mallikarjun Kharge (@kharge) November 11, 2022
उन्हें पारंपरिक मुस्लिम शिक्षा पसंद नहीं थी। वे सर सैय्यद अहमद खां के आधुनिक विचारों से सहमत थे। उन्होंने 14 साल की आयु तक सभी बच्चों के लिए निशुल्क सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा के अलावा व्यावसायिक प्रशिक्षण और तकनीकी शिक्षा की वकालत की। वे आधुनिक विज्ञान की शिक्षा के साथ स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक थे।
उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक समाज की आधी से ज्यादा आबादी यानी महिलाओं तक नहीं पहुंचता। शिक्षा संबंधी फायदों के लिए जहां वे अंग्रेजी को जरूरी मानते थे, वहीं वे यह भी मानते थे कि बच्चों को शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही देना चाहिए।
Remembering Maulana Azad on his birth anniversary. He is widely admired for his scholarly nature and intellectual prowess. He remained at the forefront of our freedom movement, working closely with other leading lights. He was also passionate about education. pic.twitter.com/gKg7BFkFSo
— Narendra Modi (@narendramodi) November 11, 2022
मौलाना अबुल कलाम आजाद ने संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी के साथ आज के प्रमुख सांस्कृतिक और साहित्यिक अकादमियों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहला आईआईटी, आईआईएससी, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग उनके शिक्षामंत्री के कार्यकाल में ही स्थापित किए गए थे जिनका वर्तमान भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है।
शिक्षा का अर्थ है, व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन। यह परिवर्तन सदैव सामयिक रहेगा। आज विचार करना होगा कि डिग्री लेने और तार्किक, वैज्ञानिक सोच जो प्रकृति के नियमों को स्वीकार करते हुए मानवीय हो, वह फर्क हमारी शिक्षा में कितनी है। जितना मानवीय हम होते जाएंगे, हम उतने ही सुशिक्षित कहलायेंगे। आज मौलाना आज़ाद को उनके कार्यों के लिए याद करते हुए हम शिक्षा के अर्थ को सार्थक सिद्ध कर सकें, यही कामना और प्रयास है।
तब मौलाना अबुल कलाम आजाद नगर होता भिलाई
का नया नाम, जानिए नेहरू का क्या था नजरिया…..
का नया नाम, जानिए नेहरू का क्या था नजरिया…..
आज देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती है।1959 में उनके गुजरने पर मप्र के मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू,देश भर के विधायकों-सांसदों ने भिलाई का नाम मौलाना आजाद नगर करने की मांग प्रधानमंत्री नेहरू से की थी लेकिन नेहरू ने इससे इनकार कर यह वजह बताई थी…. pic.twitter.com/bwlHjPSYZB
— Md. Zakir Hussain (@Mzh786Zh) November 11, 2022
भिलाई स्टील प्रोजेक्ट के निर्माण के शुरुआती दौर में एक समय ऐसा भी आया जब भिलाई नगर का नाम बदलकर मौलाना अबुल कलाम आजाद नगर रखने मध्यप्रदेश विधानसभा और देश की संसद से मांग उठी थी। हालांकि नगरों के नाम बदलने को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नजरिया बिल्कुल साफ था।
प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,कांग्रेस अध्यक्ष और देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का इंतकाल 22 फरवरी 1958 को नई दिल्ली में हुआ था। उनके गुजरने के बाद मौलाना आजाद के नाम पर राष्ट्रीय स्तर की यादगार रखने की मांग हुई थी और तत्कालीन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू (जस्टिस मार्कंडेय काटजू के दादा) इस मुहिम का नेतृत्व कर रहे थे। मुख्यमंत्री कैलाश नाथ काटजू ने लोकसभा के सांसदों के पारित प्रस्ताव की प्रति 2 अगस्त 1959 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भेजी थी।
।। सुविचार ।।#morningthoughts #MotivationalQuotes #suvichar#MaulanaAbulKalamAzad pic.twitter.com/k8bV2qVFVK
— CMO Chhattisgarh (@ChhattisgarhCMO) November 11, 2022
भिलाई का नाम बदलकर मौलाना अबुल कलाम आजाद नगर रखने मध्यप्रदेश विधानसभा से उठी मांग को मध्य प्रदेश व देश के अन्य हिस्सों के सांसदों को भेजा गया था। जिसमें कई सांसदों ने इस मांग का समर्थन करते हुए प्रस्ताव पारित किया था।
जब जवाहरलाल नेहरू को यह पत्र मिला तो उन्होंने 4 अगस्त 1959 को लिखे अपने जवाब में साफ तौर पर कहा कि- “मौलाना साहब के नाम पर भिलाई का नाम बदलना कहीं से भी उचित नहीं होगा। क्योंकि मैं इस मसले को लेकर पूरी तरह साफ हूं कि भिलाई का नाम बदलना नहीं चाहिए।
मैं यह पसंद नहीं करूंगा कि किसी शख्सियत का नाम इस तरह रेखांकित किया जाए। भिलाई को पूरी दुनिया में भिलाई के नाम से ही जाना जाता है और इसे ही बरकरार रहना चाहिए।”
स्रोत-सलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू
My humble tributes to the Bharat Ratna, freedom fighter, visionary leader and first education minister of Indja Maulana Abul Kalam Azad ji who mounted the pillars of modern day education system.
The nation will remain indebted to his contributions.#NationalEducationDay pic.twitter.com/eexnWCR9hU
— T S Singhdeo (@TS_SinghDeo) November 11, 2022