गुजरात के इस गांव में 80 प्रतिशत
लोग करते हैं पौधों का व्यवसाय
अहमदाबाद। सालों पहले गुजरात के नवसारी जिले के दोलधा गांव के किसान, नुकसान के कारण खेती छोड़ने को मजबूर थे। लेकिन आज यह गांव पौधों की नर्सरी का हब बन गया है और पूरे गुजरात, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में पौधे बेचता है।
गुजरात के नवसारी जिले के दोलधा गांव के अधिकतर लोग आदिवासी हैं। पहले गांव में रहनेवाला हर परिवार खेती से ही जुड़ा था। लेकिन खेती में ज्यादा मुनाफा न होने और गांव से शहर तक फसलें बेचना में आने वाली चुनौतियों के कारण धीरे-धीरे खेती कम होने लगी।
गांव की इस हालत को देख, साल 1991-1992 में गांव के एक टीचर अमृतभाई पटेल ने लोगों को बिज़नेस की एक ऐसी राह दिखाई कि अब गांव वालों को कहीं जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, बल्कि शहरों से लोग खुद गांव आकर यहां से पौधे खरीदते हैं।
एक शौक जो बन गया गांव की जरूरत
दरअसल, अमृत पटेल एक पर्यावरण प्रेमी थे, उन्होंने अपने शौक के कारण नौकरी करने के साथ-साथ कुछ पौधे बेचना शुरू किया था। धीरे-धीरे उनका यह काम इतना चलने लगा कि उन्होंने करीब दो साल बाद, नौकरी छोड़कर पूरा ध्यान नर्सरी बिज़नेस पर लगाने का फैसला किया। उस समय गांव में पौधों की कोई भी नर्सरी नहीं थी। उनकी बनाई नर्सरी आज उनकी बेटी बीना पटेल अपने पति नरेंद्र ठाकुर के साथ मिलकर चला रही हैं।
बीना पटेल कहती हैं, “शुरुआत में मेरे पिता स्कूटर में गुलाब और कैक्टस के कुछ पौधे लाते थे और इसकी कलम से दूसरे पौधे तैयार करते थे। यह काम इतना बढ़ गया कि आज नर्सरी का काम देखने के लिए हमारे साथ 20 से 25 मजदूर काम करते हैं और इसी बिज़नेस से हमारा परिवार भी चल रहा है।”
पूरा गांव जुड़ता गया नर्सरी बिज़नेस से
अमृतभाई के बिज़नेस को देखकर गांव के कई और लोगों ने भी प्रेरणा ली और खेती के साथ नर्सरी की शुरुआत की। साल 1997 तक गांव में कई और नर्सरी खुल गईं। उन्होंने ही गांव के लोगों को नर्सरी बिज़नेस चलाने की ट्रेनिंग भी दी।
सरपंच विजय पटेल ने बताया कि आज गांव में छोटी-बड़ी करीब 200 नर्सरियां हैं। वहीं, गांव की पूरी आबादी का 80 प्रतिशत भाग यही काम कर रहा है। विजय भाई ने खुद साल 2004 में पारम्परिक खेती छोड़कर नर्सरी शुरू की थी।
गांव की मिट्टी उपजाऊ, पानी भी मीठा
नर्सरी बिज़नेस की कामयाबी के पीछे का कारण बताते हुए उन्होंने कहा, “हमारे गांव की मिट्टी काफी उपजाऊ है। साथ ही यहां का वातावरण भी पौधे उगाने के लिए काफी अच्छा है। हमारा गांव जंगल इलाके में पड़ता है और हमारे गांव का पानी भी काफी मीठा है। यही कारण है कि यहां की नर्सरी के पौधे लोगों को काफी पसंद आते है।”
यहां के पौधों के साथ लॉन की घास भी काफी बिकती है। गांववाले, गार्डन के लॉन की घास बनाते हैं और इसे मिट्टी के साथ पैक करके बेचते हैं। बड़े-बड़े ऑफिस और घरों में लोग इस तरह की घास लगवाते हैं। ये काफी अच्छी कीमत पर बिकती हैं।
दूसरे प्रदेश भी भेजे जा रहे पौधे
यहां से पौधे, गुजरात के कई शहरों, दिल्ली, मुंबई, पुणे सहित मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी जाते हैं। विजय भाई कहते हैं कि आस-पास के कई गांव में भी अब लोग नर्सरी बिज़नेस कर रहे हैं, लेकिन दोलधा आज भी नर्सरी का होलसेल मार्केट बना हुआ है।
दोलधा गांव में 1500 से ज्यादा पौधों की किस्में मिलती हैं। विजय भाई के अनुसार, गांव के लोग नर्सरी से जुड़कर काफी समृद्ध भी हुए हैं, पहले जहां लोगों के पास साइकिल भी नहीं होती थी, वहीं आज गांव में हर किसी के पास बाइक और घर में हर तरह के साधन मौजूद हैं।
यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि यह गांव आज कई शहरों में हरियाली फ़ैलाने का काम कर रहा है।