आज जन्मदिन: कहते हैं सुपरहिट फिल्म का फार्मूला सिर्फ
देसाई ही जानते हैं, आखिरी दौर में हाथ लगी असफलता भी
मुंबई। मनमोहन देसाई का सिनेमा मसाला-सिनेमा है। वे दूसरे फिल्मकारों की तुलना में डबल तड़का लगाकर अपने दर्शकों को परोसते थे। वह यह बात अच्छी तरह जानते थे कि देश के फिल्म समीक्षक उन्हें निजाम ऑफ नानसेंस (बकवास का बादशाह) या फिर ड्रीम ऑफ एम्परर (सपनों का शहंशाह) विशेषणों के साथ खिल्ली उड़ाते हैं।
अपने आलोचकों की कभी परवाह नहीं की
देसाई ने अपने आलोचकों की कभी परवाह नहीं की। जो रास्ता एक बार तय कर लिया था, आखिरी समय तक उस पर चलते रहे। उनका सीधा तर्क था- ‘सिनेमा मेरे लिए शिक्षा तथा कला बिलकुल नहीं है। महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी भ्रष्टाचार और अभावों के बीच रहने वाला आदमी जब फिल्म देखने के लिए आता है, तो उसे मनोरंजन और सिर्फ मनोरंजन चाहिए। मैं हमेशा मनोरंजन प्रधान फिल्में बनाता रहूंगा। जब नहीं बना पाऊंगा, तो फिल्मों से संन्यास ले लूंगा।
मुम्बई के गुजराती परिवार में 26 फरवरी 1937 को जन्मे मनमोहन देसाई के पिता का साया उन पर से साढ़े तीन साल में ही उठ गया था। उनसे बड़े सुभाष देसाई फिल्म लाइन में आ गए थे। सेंट जेवियर्स स्कूल-कॉलेज से देसाई ने इन्टरमीजिएट तक शिक्षा प्राप्त की।
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बीस साल की उम्र में बड़े भाई सुभाष से कहा कि उन्हें फिल्मों में किस्मत आजमाना है। उन्हें फिल्म छलिया के निर्देशन का भार दिया गया। इस पहली फिल्म के पालने से ही देसाई के पांव दिखाई दे गए थे कि वे कितना आगे जाएंगे।
पॉश इलाके में नहीं गए रहे, हमेशा रहे खेतवाड़ी बस्ती में
देसाई ने शम्मी को लेकर फिल्म ‘ब्लफ मास्टर’ तथा ‘बदतमीज’ फिल्में बनाईं। फिल्मों ने औसत सफलता हासिल की। ब्लफ मास्टर का हंसी-मजाक-जोश-खरोश से फिल्माया गाना ‘गोविंदा आला रे’ हर जन्माष्टमी पर मक्खन की हंडिया फोड़ते समूह द्वारा जोर-शोर से गाया जाता है।
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देसाई को आम आदमी के बीच रहना अच्छा लगता था इसलिए मुंबई के पॉश इलाके में रहने के लिए वे नहीं गए। खेतवाड़ी में वे अक्सर आम लोगों के साथ क्रिकेट खेलते थे और उन्हीं के बीच से वे अपनी फिल्मों के लिए किरदार ढूंढ लिया करते थे। वो डायरेक्टर, जिसने कहा था मैंने फिल्मों को हिट करवाने का फॉर्मूला ढूंढ लिया है।
देसाई में कुछ चुंबकीय शक्ति ऐसी थी कि वे जिस सितारे को ऑफर करते वह उनकी फिल्म में काम करने को राजी हो जाता। राज कपूर से उन्होंने शुरुआत की थी। जब राजेश खन्ना सितारा बने, तो उन्हें अपनी फिल्म में मौका दिया।
अमिताभ बच्चन को सितारा हैसियत बनाने का श्रेय भी देसाई को जाता है। देसाई पर अमिताभ आंख मूंद कर विश्वास करते थे और कभी उन्होंने सवाल नहीं किया कि फिल्म में उनसे ऐसा क्यूं करवाया जा रहा है? अमिताभ जानते थे कि आम आदमी की नब्ज पर मनजी को गजब की पकड़ है।
अविश्वसनीय दृश्य फिल्माना देसाई की खासियत
देसाई की फिल्मों में ऐसे-ऐसे सीन देखने को मिलते हैं कि जादूगर पी.सी. सरकार भी वैसा जादू कभी नहीं दिखा पाते। इससे अक्सर उनकी आलोचना होती थी। फिल्म ‘अमर अकबर एंथोनी‘ में तीन नौजवान बेटे का खून सीधे एक मां को चढ़ाया जा रहा है। ऐसे ही फिल्म ‘मर्द’ में हवाई जहाज आसमान में उड़ रहा है।
जमीन पर दारासिंह खड़े हैं। वह रस्सी का फंदा इतनी ताकत से उछालते हैं कि वह हवाई जहाज के पंखों में उलझकर उसे जमीन पर उतरने को मजबूर कर देता है। यह भले ही अति हो, मगर दर्शक दारासिंह के हाथों से यह कमाल देखते हैं, तो आसानी से भरोसा कर तालियां पीटने लगते थे।
बाबू भाई मिस्त्री के सहायक रहे
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— Rajib Chakrabarti (@rajib14) February 26, 2023
फिल्म का हीरो किसी इमारत की दसवीं मंजिल से नीचे गिर रहा है, तो सड़क पर कपड़ों से लदा ट्रक गुजरता है, जो उसे बचा लेता है। भारतीय पौराणिक कथाओं में जो किरदार तथा चमत्कार हुए हैं, उन्हें आधुनिक अंदाज में परदे पर दिखाने में मनजी की महारत को सलाम करने का जी चाहता है।
इसके पीछे एक सच्चाई यह है कि डायरेक्टर बनने के पहले देसाई की ट्रेनिंग सिनेमाटोग्राफर बाबू भाई मिस्त्री के निर्देशन में हुई। बाबू भाई धार्मिक फिल्मों की ट्रिक फोटोग्राफी के बादशाह थे। देसाई ने उस कला का इस्तेमाल सामाजिक फिल्मों में किया।
उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में छलिया (1960), ब्लफ मास्टर (1963), बदतमीज (1966), किस्मत (1968), सच्चा झूठा (1970), भाई हो तो ऐसा (1972), रामपुर का लक्ष्मण (1972), शरारत (1972), आ गले लग जा (1973), अमर अकबर एंथोनी (1977), चाचा भतीजा (1977), धरमवीर (1977), परवरिश (1977), सुहाग (1979), नसीब (1981), देशप्रेमी (1982), कुली (1983), मर्द (1985), गंगा जमुना सरस्वती (1988) और तूफान (1989) शामिल है। देसाई ने कई कलाकारों को मौका दिया।
नंदा से सगाई और फिर अचानक मौत
जीवन का एक लंबा अरसा मनमोहन देसाई ने विधुर रहते गुजारा। फिर एक दिन अचानक उन्होंने अभिनेत्री नंदा से सगाई कर ली। सभी ने दोनों के सुखद वैवाहिक जीवन की शुभकामनाएं दी। लेकिन एक दिन अचानक एक मार्च 1994 को देसाई ने अपनेघर की पांचवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली । यह रहस्य आज भी रहस्य है कि उन्होंने ऐसा क्यों किया?