रायपुर 11 फरवरी 2024: छत्तीसगढ़ के राजा देवेंद्र प्रताप सिंह राज्यसभा जायेंगे। भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी बनाया है। सरोज पांडेय की खाली हुई सीट के लिए भाजपा ने रविवार प्रत्याशी के नाम का ऐलान किया। छत्तीसगढ़ की राजनीति में राजा देवेंद्र प्रताप सिंह का नाम बेहद चौकाने वाला है। हालांकि ये तय माना जा रहा है कि हर बार अपने फैसलों से हैरान करने वाले पीएम मोदी इस बार राज्यसभा चुनाव में भी जरूर कुछ ना कुछ नया करेंगे। आईये जानते हैं राजा देवेंद्र प्रताप सिंह के बारे में..
जानिये कौन हैं राजा देवेंद्र प्रताप सिंह
राजा देवेंद्र प्रताप सिंह, रायगढ़ के महाराजा चक्रधर सिंह के प्रपौत्र है। आज भी रायगढ़ में महाराजा चक्रधर के नाम पर चक्रधर समारोह का आयोजन होता है। राजा देवेंद्र प्रताप सिंह गौंड राजा की विरासत को अभी संभाल रहे हैं।राजा देवेंद्र प्रताप सिंह ने एमए तक की पढ़ाई की है। उन्होंने इतिहास से स्नातकोत्तर तक की उपाधि ली है। राजा देवेंद्र प्रताप सिंह के पिता राज्य सुरेंद्र प्रताप सिंह भी राज्यसभा के सदस्य रहे हैं। राजा देवेंद्र प्रताप कांग्रेस में भी थे, लेकिन दो दशक पहले वो भाजपा में शामिल हो गये। उनकी पत्नी रानी भवानी देवी सिंह है। उन्होंने 10वी और 12वीं रायपुर के राजकुमार कालेज से की, उसका बाद उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफन कालेज से पढ़ाई की। वो राजनीति के साथ-साथ व्यापार से भी जुड़े हैं। वो अभी भारत पेट्रोलियम रायगढ़ के रिटेल आउटलेट के डीलर हैं, साथ ही कृषि सामिग्री का भी डिलरशिप उनके पास है। अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखने वाले देवेंद्र प्रताप सिंह राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे हैं। 2005-06 में वो अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश मंत्री रह चुके हैं। वहीं 2008 में वो भाजपा प्रदेश विशेष आमंत्रित सदस्य बने। 2011-12 में अनुसूचित जनजाति मोर्चा रायगढ़ के जिलाध्यक्ष रहे। 2011 में अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहे। वो लैलूंगा के जिला पंचायत सदस्य भी रह चुके हैं। साथ ही रेलवे हिंदी सलाहकार समिति (रेलवे मंत्रालय) के सदस्य भी रह चुके हैं।
कौन थे महाराजा चक्रधर सिंह
रायगढ रियासत ब्रिटिशराज के समय भारत की एक रियासत (प्रिंसली स्टेट) था। ये राजवंश गोंड राजाओं की तरफ से शासित थी। रायगढ़ रियासत की स्थापना 1625 में हुई थी, लेकिन उन्हें अंग्रेजों ने रियासत के रूप में मान्यता 1991 में मिली। भारत सरकार में शामिल होने वाला सबसे पहला रियासत रायगढ़ रियासत ही था। उस समय के रायगढ़ रियासत के राजा ललित सिंह थे। राजा ललित सिंह की दानशीलता काफी चर्चित रही। वो महाराजा चक्रधर सिंह के पुत्र थे ।महाराजा चक्रधर सिंह संगीत और कला में बहुत काम किये ।जिसके कारण रायगढ़ रियासत को पहचान मिली ।रायगढ़ में आज भी चक्रधर समारोह पूरे 10 दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
गोंड राजा चक्रधर सिंह पोर्ते का जन्म 19 अगस्त, 1905 को रायगढ़ रियासत में हुआ था । नन्हें महाराज के नाम से सुपरिचित, आपको संगीत विरासत में मिला । उन दिनों रायगढ़ रियासत में देश के प्रख्यात संगीतज्ञों का नियमित आना-जाना होता था । पारखी संगीतज्ञों के सान्निध्य में शास्त्रीय संगीत के प्रति आपकी अभिरुचि जागी । राजकुमार कॉलेज, रायपुर में अध्ययन के दौरान आपके बड़े भाई के देहावसान के बाद रायगढ़ रियासत का भार अचानक से उनके कंधों पर आ गया। 1924 में राज्याभिषेक के बाद अपनी परोपकारी नीति एवं मृदुभाषिता से रायगढ़ रियासत में शीघ्र अत्यन्त लोकप्रिय हो गए । कला-पारखी के साथ विभिन्न भाषाओं में भी आपकी अच्छी पकड़ थी । कत्थक के लिए आपको खास तौर पर जाना गया .और आपने रायगढ़ कत्थक घराना की नींव रखी.
छत्तीसगढ़ के पूर्वी छोर पर उड़ीसा राज्य की सीमा से लगा जनजाति बाहुल्य जिला मुख्यालय रायगढ़ स्थित है। दक्षिण पूर्वी रेल लाइन पर बिलासपुर संभागीय मुख्यालय से 133 कि. मी. और राजधानी रायपुर से 253 कि. मी. की दूरी पर स्थित यह नगर उड़ीसा और बिहार प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, नदी-नाले, पर्वत श्रृंखला और पुरातात्विक सम्पदाएं पर्यटकों के लिए आकर्षण के केंद्र हैं। रायगढ़ जिले का निर्माण 01 जनवरी 1947 को ईस्टर्न स्टेट्स एजेन्सी के पूर्व पांच रियासतों क्रमश: रायगढ़, सारंगढ़, जशपुर, उदयपुर और सक्ती को मिलाकर किया गया था। बाद में सक्ती रियासत को बिलासपुर जिले में सम्मिलित किया गया। केलो, ईब और मांड इस जिले की प्रमुख नदियां है। इन पहाड़ियों में प्रागैतिहासिक काल के भित्ति चित्र सुरक्षित हैं। आजादी और सत्ता हस्तांतरण के बाद बहुत सी रियासतें इतिहास के पन्नों में कैद होकर गुमनामी के अंधेरे में खो गये। लेकिन रायगढ़ रियासत के गोंड महाराजा चक्रधरसिंह पोर्ते का नाम भारतीय संगीत कला और साहित्य के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा। राजसी ऐश्वर्य, भोग विलास और झूठी प्रतिष्ठा की लालसा से दूर उन्होंने अपना जीवन संगीत, नृत्यकला और साहित्य को समर्पित कर दिया। इसके लिए उन्हें कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधीन रहना पड़ा। लेकिन 20 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में रायगढ़ दरबार की ख्याति पूरे भारत में फैल गयी। यहां के निष्णात् कलाकार अखिल भारतीय संगीत प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पुरस्कृत होते रहे। इससे पूरे देश में गोंड महाराजा चक्रधर सिंह की ख्याति फैल गयी।