शनिदेव न्यायाधीश की भांति इंसान के कर्मों का फैसला करते हैं, साढ़ेसाती के दौरान शनिदेव व्यक्ति को उसी प्रकार निखारता है जिस प्रकार एक कुम्हार मिट्टी को निखारते हुए उसे एक सुंदर बर्तन का रूप दे देता है।एक आम व्यक्ति शनि की साढ़ेसाती का नाम सुनते ही घबरा जाता है, क्योंकि सबके मन में यह धारणा घर कर गई है कि साढ़ेसाती का प्रभाव हमेशा अशुभ ही होता है।
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शनि का डर समाज में इस तरह से व्याप्त है कि अगर किसी का कोई भी नुकसान हुआ हो या व्यापार में घाटा लग गया हो तो सारा दोष शनिदेव के ऊपर ही आता है। शनिदेव के बारे में लोगों की धारणा बहुत ही नकारात्मक है यद्यपि शनि को ज्योतिष में अशुभ ग्रह माना गया है, लेकिन इसका अंतिम परिणाम सुखद होता है, यह मनुष्य को दुर्भाग्य तथा संकटों के चक्कर में डालकर अंत में उसे तपाकर शुद्ध, सात्विक तथा कर्मशील बना देता है।
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साढ़ेसाती चल रही हो और अशुभ शनि के कारण घोर कष्ट, पीड़ा हो रही हो, तो यह समझना चाहिए कि शनि चिकित्सक की भांति आपका इलाज कर पूर्व जन्म के अशुभ कर्मों का फल देकर उन्हें शांत कर रहे हैं। अगर किसी व्यक्ति की टांग में घाव सड़ने लगता है और उसका जहर समस्त शरीर में फैलने का भय होता है तो डाक्टर समस्त शरीर को बचाने एवं मरीज की प्राण रक्षा के लिए उस अंग को काट देता है, क्या यह क्रूरता है? इसी प्रकार शनि भी अपनी तरह से इलाज करता है और व्यक्ति को कष्ट देकर मेहनती, ईमानदार और परिश्रम करने वाला बनाता है।
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शनि की साढ़ेसाती की शुभता या अशुभता इस बात पर निर्भर करती है कि जन्म कुंडली मे शनि कैसी स्थिति में है। जिनकी कुंडली में शनि बलवान होकर शुभ स्थानों पर बैठता है, ऐसे व्यक्तियों की किस्मत का ताला साढ़ेसाती के दौरान ही खुलता है, ऐसे व्यक्ति की साढ़ेसाती के दौरान घर में मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं, नया वाहन, मकान, जमीन जायदाद प्राप्त होती है, व्यवसाय मे उन्नति तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता मिलती है। लेकिन अगर कुंडली में शनि निर्बल, नीच राशि में हो, शत्रु क्षेत्रीय हो और अशुभ स्थान पर बैठा हो, तो साढ़ेसाती के दौरान शनि कुपित होकर सर्वनाश कर देते हैं।
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शनि को तुला राशि में उच्च का माना जाता है तथा मेष राशि में शनि नीच के कहलाते हैं। जिन व्यक्तियों की कुंडली में शनि नीच राशि का हो अथवा अकारक हो, उन्हें साढ़ेसाती के दौरान अपने कर्मों में सुधार कर उपाय अवश्य करते रहना चाहिए, अन्यथा ऐसे व्यक्तियों पर शनि की दृष्टि पड़ते ही विपत्तियों के पहाड़ टूट पड़ते हैं, कलह, क्लेश, मानसिक तनाव, शारीरिक रोग, शत्रु पीड़ा से लेकर धन-हानि तक उठानी पड़ती है।
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शनि की दशा लगने पर अथवा साढ़ेसाती, ढैय्या आदि चलने पर प्रत्येक व्यक्ति को अपना कार्य पूर्ण ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ करना चाहिए क्योंकि शनिदेव कभी भी ईमानदार व्यक्ति को दंडित नहीं करते हैं तथा शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या की अवधि समाप्त होने पर व्यक्तियों को उनके कर्म अनुसार पुरस्कृत भी करते हैं। जिन लोगों को वकालत आदि क्षेत्र में रूचि हो और उनकी जन्मपत्री में शनि बलवान हो, तो ऐसी स्थिति में करियर निर्धारण करते समय वकालत आदि क्षेत्रों का चयन करना श्रेयस्कर रहता है। जन्मकुंडली में शनि बलवान होने पर व्यक्ति को न्यायाधीश पद पर नियुक्त करता है।
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