ये कैसा फरमान, निजी स्कूलों में छात्रों के लिए महंगे ब्रांडेड स्पोर्ट्स शूज अनिवार्य,जेब पर पड़ेगा अनावश्यक बोझ…
रायपुर। प्रदेश के कई हिस्सों में निजी स्कूलों द्वारा यूनिफॉर्म और जूतों को लेकर मनमाने निर्णय थोपने के मामले सामने आ रहे हैं। राजधानी के कई प्रतिष्ठित स्कूलों ने छात्रों के लिए एक अलग ही फरमान जारी कर दिया है। यहां केवल एडिडास व पूमा ब्रांड के ब्लैक स्पोर्ट्स शूज़ को अनिवार्य किया है, जो सामान्य ब्रांड के मुकाबले तीन से चार गुना अधिक महंगे हैं।
एक बड़े स्कूल की नोटशीट पर लिखा गया है कि ’’मेडिकली बेनीफिशियल’’ एडिडास या पूमा शूज़ ही अनुशंसित हैं। इसी आधार पर छात्रों को नोट लिखकर अन्य ब्रांड के जूतों को अस्वीकृत कर दिया जा रहा है। वहीं, यूनिफॉर्म के लिए केवल पंडरी स्थित एकल विक्रेता से ही खरीदने का मौन दबाव परिजनों पर डाला जा रहा है, जिससे अभिभावकों की जेब पर अनावश्यक बोझ पड़ रहा है।
पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा दी जाने वाली निशुल्क किताबें अब तक स्कूलों तक नहीं पहुंच पाई है। इसे देखते हुए छत्तीसगढ़ प्राइवेट स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन ने पाठ्य पुस्तक निगम से किताबों को ऑनलाइन उपलब्ध कराने का निवेदन किया है। एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पुस्तकें उपलब्ध करवाने पर हो रहे विलंब और पढ़ाई के नुकसान की जानकारी दी। उन्होंने पत्र में लिखा है कि प्रदेश में अशासकीय स्कूलों को प्रतिवर्ष पाठ्यपुस्तक निगम निशुल्क पुस्तक के उपलब्ध कराता है।
इस वर्ष प्रदेश के किसी भी स्कूल को अब तक किताबें उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। स्कूलों को खुले भी अब एक हफ्ते से ज्यादा हो गया है। किताबें अभी तक डिपो भी नहीं पहुंची हैं। ऐसी स्थिति में विद्यार्थियों तक किताब पहुंचने में कम से कम 15 जुलाई तक समय लगेगा। इस एक महीने में हमारे पास विद्यार्थियों को पढाने के लिए कुछ भी नहीं है। इस दौरान कम से कम हमें स्कूलों किताबों का पीडीएफ ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाए, ताकि जो स्कूल इन किताबों से पढ़ाना चाहते हैं वह कम से कम शुरुआती पाठ्यक्रम पीडीएफ से पढ़ाना शुरू कर सकें।
स्कूल और विक्रेताओं के बीच सांठगांठ
यह मामला स्कूलों और निजी विक्रेताओं के बीच संभावित सांठगांठ की ओर संकेत करता है, जिससे पारदर्शिता व अभिभावकों की स्वतंत्रता दोनों पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं। प्रशासनिक स्तर पर कोई स्पष्ट निर्देश या हस्तक्षेप नहीं किया गया है, जिससे आम लोगों में असंतोष व्याप्त है।
जानकारी के अनुसार, स्कूल और विक्रेताओं के बीच किताब, ड्रेस जैसे सभी चीजों के लिए आपस में सांठगांठ होता है। इसमें स्कूलों को अलग कमिशन फिक्स होता है। कमिशन का प्रतिशत स्कूल और विक्रेताओं के बीच आपसी सामंजस्य से फिक्स किया जाता है। वहीं, कई स्कूलों द्वारा अपने स्टूडेंट्स की सभी डिटेल भी विक्रेताओं को दे दी जाती है, जिससे वे पैरेंट्स को कॉल करते है। जिला शिक्षा अधिकारी से जब इस विषय पर बात करने के लिए कॉल की गई तो उनके द्वारा कोई भी रिस्पॉन्स नहीं किया गया।
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