रायपुरः Ban on Cotton Candy : तमिलनाडु सरकार ने कॉटन कैंडी की बिक्री पर रोक लगा दी है। दरअसल, सरकार को तमिलनाडु और पुडुचेरी में बिक रहे कॉटन कैंडी यानी बुढ़िया के बाल और दूसरी कई कैंडीज में हानिकारक केमिकल की शिकायत मिली थी। इसे फूड एंड सेफ्टी डिपार्टमेंट ने लैब में टेस्ट किया तो पता चला कि कॉटन कैंडीज को रंग-बिरंगा बनाने के लिए इस्तेमाल हो रहे केमिकल बेहद हानिकारक हैं। ये कैंसर का कारण बन रहे हैं। इसके दूसरे खतरे भी हैं, बच्चे ज्यादा गुस्सैल और चिड़चिड़े हो जाते हैं।
‘आर्काइव्स ऑफ डिजीज इन चाइल्डहुड’ की एक स्टडी के मुताबिक, डाइट में मिलाए जा रहे आर्टिफिशियल फूड कलर्स से लोगों के अटेंशन यानी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। स्टडी में जब डाइट से इन आर्टिफिशियल फूड कलर्स को हटा दिया गया तो अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) के लक्षण काफी कम हो गए। दुनिया भर की फूड रेगुलेटरी बॉडीज फूड टॉक्सिटी को कम करने की दिशा में काम कर रही हैं। कई प्रकार के फूड कलर्स पर बैन भी लगाए गए हैं। इसके बाद भी रेहड़ी और ठेलों पर बिक रहे खाने की चीजों में इन्हें धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है।
आज ‘सेहतनामा’ में बात करेंगे कॉटन कैंडी जैसी खाने की कई चीजों में मिलाए जा रहे आर्टिफिशियल फूड कलर्स से होने वाले नुकसान के बारे में। साथ ही जानेंगे कि-
आर्टिफिशियल फूड कलर्स
फूड कलर केमिकल्स से बनाए जाते हैं। इन्हें खाने-पीने की चीजों को रंग देकर ज्यादा सुंदर और चमकदार बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ऑक्यूपेशनल एंड एनवायर्नमेंटल हेल्थ’ के मुताबिक, फूड कलर्स को मूल रूप से कोयला टार और अब पेट्रोलियम से सिंथेसिस किया जाता है। ये रंग आपके फूड आइटम्स को दिखने में ज्यादा आकर्षक बनाते हैं। लोगों को ज्यादा सुंदर चीजें ही पसंद आती हैं तो नेचुरल रंगों की तुलना में ये मार्केट में पसंदीदा विकल्प भी हैं।
किन राज्यों में बैन हो गए बुढ़िया के बाल
बच्चों की पसंदीदा खाने की चीजों में से एक कलरफुल कॉटन कैंडी यानी बुढ़िया के बाल भी हैं। तमिलनाडु सरकार के एक्शन में आने के बाद से सभी राज्य धीरे-धीरे सतर्क हो रहे हैं। दिल्ली सरकार भी इसकी क्वॉलिटी पर जांच की योजना तैयार कर रही है। इससे बच्चों की इस फेवरेट कैंडी पर सवाल खड़े हो गए हैं।
कैंडी को कलर देने वाला ‘रोडामाइन-बी’ है कैंसर की वजह
मार्केट में ब्लू, येलो, रेड, ग्रीन और पिंक कलर की कॉटन कैंडी बिक रही हैं। अब तो ये रेहड़ी से निकलकर बड़े मॉल्स में भी अच्छी पैकिंग और ज्यादा आर्टिफिशियल कलर्स के साथ पहुंच गई हैं। लेकिन कॉटन कैंडी को कलर देने के लिए जिस केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, उसे ‘रोडामाइन-बी’ कहा जाता है। यह एक डाई केमिकल है, जिसका इस्तेमाल कपड़े और लेदर इंडस्ट्रीज में किया जाता है। यह अगर खाने में इस्तेमाल की जाए तो कैंसर का कारण बनता है। तमिलनाडु सरकार ने जब अपने यहां इस पर स्टडी कराई तो कॉटन कैंडी में रोडामाइन-बी पाई गई। इसलिए सरकार ने इसके इस्तेमाल पर बैन लगा दी है।
इम्यून सिस्टम खराब होता
आर्टिफिशियल फूड कलर्स आपकी बॉडी में इंफ्लेमेशन बढ़ा देते हैं। इसका आपके इम्यून सिस्टम पर बुरा असर पड़ता है। क्योंकि आर्टिफिशियल कलर्स में छोटे मॉलिक्यूल्स होते हैं, जो हमारे शरीर में मौजूद प्रोटीन में मिल सकते हैं। अगर ये मॉलिक्यूल्स प्रोटीन में मिलकर आ रहे हैं तो इम्यून सिस्टम बुरी तरह डिस्टर्ब हो सकता है। नतीजतन बॉडी को बीमारियों के खिलाफ डिफेंड करना मुश्किल हो जाता है।
इन्फेक्शन और एलर्जी की आशंका
खाने में फूड कलर इस्तेमाल करने से इन्फेक्शन या एलर्जी की आशंका ज्यादा होती है। येलो 5 फूड डाई के सेवन से स्किन पर रेड रैशेज हो जाते हैं। अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर का शिकार हो सकते हैं। बच्चों में इससे एकाग्रता की कमी हो जाती है। पढ़ाई में ध्यान कम लगता है और चंचलता बढ़ जाती है। सामान्य सी बात में तेज गुस्सा करने लगता है। हाइपर एक्टिविटी की समस्या, हार्ट और ब्रेन की बीमारी हो सकती है। लिवर और पाचन तंत्र खराब हो सकते हैं। पीले रंग की एक डाई जिसे टार्ट्राजिन कहा जाता है, इससे अस्थमा का खतरा होता है।