55 दिन बाद बेटी की शादी है। इसके पिता की 4 साल पहले मौत हो चुकी है। आंगनबाड़ी में काम करके किसी तरह गुजारा चला रही हूं। बेटी की शादी की तैयारियां कर रही थी, टेंट भी बुक कर दिया था। जिस घर के आंगन में शादी का मंडप सजना था, उसे जेसीबी लेकर पहुंचे प्रशासन ने उजाड़ दिया। अब हम कहां जाएंगे, बेटी की शादी कैसे करेंगे।
ये टीस है उस मां की जिसके मकान को बुलडोजर ने चंद मिनटों में धाराशायी कर दिया। कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए हैं। जालोर के ओडवाड़ा गांव में हाईकोर्ट के आदेश पर गुरुवार को 150 घरों को तोड़ने पहुंचे 7 बुलडोजर के आगे कई परिवारों के सपने जमींदोज हो गए। करीब 5 दशक से यहां रह रहे हजारों लोग अब बेघर होने की कगार पर हैं। इन्हीं में से एक है अन्नू।
गुरुवार को जेसीबी ने जैसे ही अपना पंजा चलाया, अपनी शादी का सपना संजोए बैठी अन्नू फूट-फूटकर रोने लगी। अन्नू की तरह और भी कई महिलाएं अपने घरों को देख रोने लगीं। लोग प्रशासन और पुलिस अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाते रहे, रोते रहे। उनकी एक न सुनी गई।
बेटी की शादी से पहले तोड़ दी घर की दीवार
हाईकोर्ट के आदेश पर ओडवाड़ा गांव के 268 कच्चे-पक्के मकानों और बाड़ों को तोड़ने की कार्रवाई गुरुवार को शुरू हुई। गांव में 7 बुलडोजर, सैकड़ों पुलिसकर्मी जैसे ही आगे बढ़े यहां बरसों से रह रही सीता देवी (40) और उनकी बेटी अनिता (22) उर्फ अन्नू विरोध करने वाली भीड़ में सबसे आगे थीं।
अधिकारियों के सामने सीता देवी और महिलाए गिड़गिड़ाती रहीं। उनकी एक न चली। आदेश हुआ और जेसीबी सीता देवी के मकान की तरफ बढ़ी। मकान की चारदीवारी को जेसीबी ने तोड़ा तो मां-बेटी बिलख-बिलख रोने लगीं। अनिता की रुलाई फूट पड़ी। फिर वह बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी। पड़ोसियों ने उसे उठाया और आहोर हॉस्पिटल पहुंचाया। जहां से उसे जालोर रेफर कर दिया गया। वहां से मां सीता देवी बेटी को इलाज के लिए जोधपुर ले गईं।
सीता देवी ने बताया कि वह आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। बेटी अनिता की शादी 11 जुलाई की तय कर रखी है। अनिता के पिता की 4 साल पहले मौत हो चुकी है। पति के जाने के बाद कभी नरेगा में मजदूरी की तो कभी आंगनबाड़ी में काम किया। बेटी ने अभी बीए फाइनल का एग्जाम दिया है। जीवन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बेटी की शादी की है, उसे निभाने की तैयारी में जुटी थी।
सब बुक कर दिया था, लेकिन प्रशासन ने उसका पीहर छीनने पहुंच गया। अब आगे क्या होगा, कैसे शादी करूंगी, कहां जाएंगे? कुछ पता नहीं। सिर ढकने को इसके अलावा कोई जमीन-जगह नहीं है।
सीता देवी ने बताया- पति छोटूलाल ने यहां प्लॉट खरीदा था। पंचायत ने कच्चा पट्टा जारी दिया था। मकान बनाते इससे पहले पति का निधन हो गया। पाई-पाई जोड़कर कच्चा-पक्का मकान बनाया। यही हमारी जीवन भर की दौलत है। अब इसे तोड़ने के आदेश आ गए। हमारी क्या गलती है, हमें यह पता नहीं।
बेटी बोली- घर टूटते देखा तो आंसू निकल आए
अनिता ने बताया कि हमारे पास इस घर आंगन के अलावा और क्या है? मेरी मां ने दिन रात मजदूरी कर खून पसीने की कमाई से इस घर को बनवाया था। मैंने जब उन दीवारों को टूटते हुए देखा तो मेरा रोना निकल गया। कुछ दिन बाद ही मेरी शादी है, मेरी मां ने इसी घर में बारात के स्वागत का सपना संजोया था, ये घर ये आंगन ही नहीं बचेगा तो हम बिलकुल टूट जाएंगे। आज मेरी मां के कंधों पर जो जिम्मेदारी है, उसे ये प्रशासन क्या समझेगा।
घर टूटने का डर, दो भाई बेंगलुरू गए
ओडवाड़ा गांव में हर टूटते घर की एक कहानी है। इसी बस्ती में 22 साल के भोमाराम का भी घर है। 15 साल पहले भोमाराम ने पिता को खो दिया था। उस वक्त छोटे भाई प्रवीण का जन्म ही हुआ था। 8 साल पहले दोनों की मां का भी निधन हो गया। दोनों भाई बड़ी मां पोनी देवी के साथ अपने घर में रह रहे थे। माता-पिता के जाने के बाद यह घर ही उनकी विरासत रह गया। जब घर टूटने के नोटिस आने लगे तो भोमाराम ने बेंगलुरू में नौकरी तलाश ली।
मकान टूटने के डर से भोमाराम अपने साथ छोटे भाई प्रवीण (15) को भी ले गया। अब तक प्रवीण गांव में पढ़ाई कर रहा था। भोमाराम ने कहा कि प्रवीण उसके साथ शहर में रहेगा और वहीं पढ़ाई करेगा। पोनी देवी ने कहा- भोमा और प्रवीण के पिता ने जो मकान बनाया था वह तो टूट रहा है, दोनों बच्चे जालोर लौटकर आएंगे तो कहां रहेंगे।
60 साल से है बस्ती, कनेक्शन काट दिए
आहोर क्षेत्र के गांव ओडवाड़ा में ऐसी ही दर्दभरी कहानी कई परिवारों की है। ओडवाड़ा बस्ती करीब 60 साल से है। जालोर-बाड़मेर हाईवे से यह 8 किलोमीटर अंदर है। ओडवाड़ा गांव पंचायत ने लोगों को कच्चे पट्टे दिए थे। उसी आधार पर बिजली के कनेक्शन मिल गए थे।
लोगों का कहना है कि उन्हें यह नहीं बताया गया कि वे विकल्प के तौर पर क्या करें। यहां से हटा दिया तो कहां जाएंगे। प्रशासनिक अधिकारियों के पास इसका कोई जवाब नहीं है। बस्ती के अधिकतर लोग मजदूरी या फिर खेती बाड़ी करते हैं।
घर टूटते देख सीना तान खड़े हुए पुरुष-महिलाएं, खाई पुलिस की लाठियां
ओडवाड़ा गांव में दिनभर हुई अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान कई रुलाने वाली तस्वीरें सामने आईं। घरों को टूटता देख सैकड़ों पुरुष और महिलाएं पुलिस के सामने खड़ी हो गईं। कई महिलाओं ने बुलडोजर के आगे लेटकर उसे रोकने की कोशिश की।
पुलिस की लाठियां भी खाईं। लेकिन प्रशासन मौन रहा। कई कच्चे मकानों को धाराशायी कर दिया गया, वहीं पक्के मकानों की दीवारों पर बुलडोजर चलाए गए। यह कार्रवाई 268 मकानों पर होगी। इसके बाद गांव का करीब 40 फीसदी हिस्सा खत्म हो जाएगा।
हाईकोर्ट ने 7 मई को जारी किए थे आदेश
ओडवाड़ा गांव की 35 एकड़ ओरण भूमि पर बने मकान-बाड़ों को हटाने के आदेश हाईकोर्ट ने 7 मई को दूसरा आदेश जारी किया था। पहले आदेश के बाद 2 मई को आहोर तहसीलदार हितेश त्रिवेदी ने मकानों के चिह्नीकरण का काम किया था।
आहोर तहसीलदार हितेश त्रिवेदी ने बताया- पहले इन सभी घरों को नोटिस दिये थे, लोगों ने मकान खाली नहीं किए। 7 मई को फिर हाईकोर्ट ने आदेश जारी कर ओरण भूमि में बने मकानों को हटाने के आदेश दिए। हमने नोटिस जारी कर 14 मई तक मकान व अन्य कब्जे खाली करने को कहा।
साफ कह दिया था कि 16 मई को प्रशासन कार्रवाई करेगा और बेदखल कर सामान जब्त किया जाएगा। आहोर SDM शंकर लाल मीणा ने बताया- कोर्ट के आदेशानुसार कार्रवाई की जा रही है। जहां कोर्ट का स्टे है, उन जगहों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
दो भाइयों का प्रॉपर्टी विवाद कोर्ट पहुंचा तो सामने आया अतिक्रमण
ओडवाड़ा की पूर्व संरपंच प्रमिला राजपुरोहित ने बताया कि 3 साल पहले गांव के दो चचेरे भाइयों मुकेश पुत्र मूल सिंह राजपुरोहित और महेन्द्र पुत्र बाबूसिंह राजपुरोहित में जमीन के बंटवारे को लेकर विवाद हो गया। दोनों भाई हाईकोर्ट पहुंच गए। गांव वालों ने दोनों में आपसी समझौता करवाने की कोशिश भी की, लेकिन दोनों ही नहीं माने।
उनकी जमीन का नाप हुआ। नाप में सामने आया कि गांव के 440 मकान ओरण (चारागाह) भूमि पर बने हैं। एक भाई मकान पर स्टे ले आया, इसलिए उसका घर बच गया। दूसरे भाई बाबू सिंह के स्टे नहीं होने से घर की दीवार का हिस्सा जरूर तोड़ा। दोनों भाइयों के बाड़े से कब्जा तोड़ा गया। इनमें से एक भाई कोलकाता में रहता है। दूसरा भाई जालोर शहर में रहता है।
पहले भी हुई थी कार्रवाई
कोर्ट के आदेश से 2022 व 2023 में कुछ कच्चे अतिक्रमण हटाए गए। अब फिर से कोर्ट के आदेश पर 150 से अधिक कच्चे मकान और 160 के करीब बाड़े हटाने को लेकर निशान लगाए गए। 7 मई के आदेश के बाद 16 मई को इसी आदेश को लेकर कार्रवाई की गई। यह कार्रवाई 3 दिन चल सकती है।
पूर्व सरपंच प्रमिला राजपुरोहित के नेतृत्व में गांव की महिलाओं ने राष्ट्रपति के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा है। इसमें बताया है कि तीन पीढ़ियों से लोग यहां रह रहे हैं। गांव की आबादी 12 हजार है। यहां एक हजार मकान बने हुए हैं। समय समय पर पंचायत समिति और तहसीलदार के जरिए कच्चे पट्टे बनाए गए थे। कुछ लोगों ने स्टे ले लिया है। गांव में कई ऐसे लोग हैं जो जोधपुर जाकर कोर्ट से स्टे नहीं ले सकते। उनके पास इतना पैसा ही नहीं है।
सरकारी बिल्डिंग भी अतिक्रमण के दायरे में
हाईकोर्ट द्वारा 16 मार्च 2021 को दिए गए निर्णय के बाद गांव के 440 भूखंडों को चिन्हित किया गया था। इसमें आवासीय कच्चे व पक्के मकानों के अलावा इंदिरा आवास, ग्राम पंचायत भवन, गोशाला व मंदिर भी शामिल हैं। इन 440 भूखंडों में से करीब 20 पर स्टे ले लिया गया है। वहीं, 37 एकड़ में 410 भूखंड शेष बचे हैं, लेकिन 268 को ही नोटिस दिया गया है।