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Reading: नर और मादा तोप की सलामी : श्रीकृष्ण का एकमात्र मंदिर जहां निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा
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Home » प्रदेश » नर और मादा तोप की सलामी : श्रीकृष्ण का एकमात्र मंदिर जहां निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा

प्रदेशहमर छत्तीसगढ़

नर और मादा तोप की सलामी : श्रीकृष्ण का एकमात्र मंदिर जहां निभाई जाती है ये अनोखी परंपरा

Junior Editor1
Last updated: August 26, 2024 8:12 am
Junior Editor1 5 Min Read
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Krishna Janmashtami 2024: क्या आपको ऐसी जगह के बारे में मालूम है जहां जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. भगवान श्रीकृष्ण के जितने रूप, उतने ही मंदिर और हर मंदिर से जुड़ा कोई ना कोई दिलचस्प किस्सा होता है. हम जिस भगवान कृष्ण के मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं वह राजस्थान में स्थित है और यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना बताया जाता है. राजस्थान के नाथद्वारा शहर में स्थापित श्रीनाथ जी मंदिर में जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. यहां साल भर भगवान के बाल स्वरूप के दर्शन करने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों भक्त इस मंदिर में आते रहते हैं.

Contents
कौन है श्रीनाथजीतोपों की सलामी की परंपरामहाराणा राजसिंह ने औरंगजेब से जान पर खेल कर बचाई मूर्तिजन्माष्टमी के चावल तिजोरी मैं रखने की मन्यतामंदिर को नादिर शाह नहीं लूट पाया था

कौन है श्रीनाथजी

श्रीनाथजी वैष्णव संप्रदाय के केंद्रीय देवता हैं. वल्लभाचार्य ने पुष्टीमार्ग वल्लभ संप्रदाय की स्थापना की थी. उनके बेटे विट्ठलनाथजी भगवान श्रीनाथजी के बड़े ही भक्त थे. नाथद्वारा शहर में श्रीनाथ जी की भक्ति का प्रचार-प्रसार करने का श्रेय उन्हें ही जाता है. श्रीनाथ जी, भगवान श्रीकृष्ण का ही 7 वर्षीय बाल स्वरूप है, जब उन्होंने भगवान इंद्र के प्रकोप से बृजवासियों को बचाने के लिए अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था.

तोपों की सलामी की परंपरा

उदयपुर से करीब 40 किमी दूर नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथ जी के मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया जाता है. इस अवसर पर देश-विदेश से कृष्णभक्तों का सैलाब उमड़ जाता है. जन्माष्टमी के समय रात को ठीक 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. जिन दो तोपों से भगवान को सलामी दी जाती है, उन्हें नर और मादा तोप कहा जाता है. हर साल मंदिर के प्रशिक्षित होमगार्ड इस परंपरा का निर्वाह करते हैं और इन्हीं तोपों से भगवान श्रीकृष्ण को सलामी दी जाती है.

महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब से जान पर खेल कर बचाई मूर्ति

राजस्थान के नाथद्वारा में स्थापित श्रीनाथ जी की मूर्ति पहले आगरा और ग्वालियर में गयी. जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया तो वहां के महंत इसे लेकर पहले वृंदावन, फिर जयपुर और मारवाड़ पहुंचे. इसके बाद सुरक्षा के दृष्टि से बाड़मेर के तत्कालीन पाटोदी ठाकुर ने इसका बीड़ा उठाया. 6 माह तक श्रीनाथ जी पाटोदी में विराजे और जब इस बात का पता औरंगजेब को चला तो महंत ने मूर्ति को लेकर मेवाड़ का रुख किया. इसके बाद कोठारिया के ठाकुर और महाराणा राजसिंह ने अपनी जान पर खेलकर नाथद्वारा में श्रीनाथ जी को स्थापित करवाया था. कहा जाता है कि जब मूर्ति को लेकर रथ आगे बढ़ रही थी, तब रथ का पहिया कीचड़ में धंस गया. इसलिए महाराणा ने इसी गांव में श्रीनाथ जी की मूर्ति स्थापित करने का फैसला लिया.

जन्माष्टमी के चावल तिजोरी मैं रखने की मन्यता

नाथद्वारा में स्थापित श्रीनाथ जी के मंदिर को ‘श्रीनाथ जी की हवेली’ कहा जाता है. श्रीनाथजी मंदिर में आने वाले भक्त अपने साथ चावल के दाने लेकर आते हैं. जन्माष्टमी की पूजा के बाद चावल के इन दानों को वे अपनी तिजोरी में संभाल कर रख देते हैं. ऐसा माना जाता है कि चावल के इन दानों में उन्हें श्रीनाथ जी की छवि दिखाई देती है और घर में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है.

मंदिर को नादिर शाह नहीं लूट पाया था

मंदिर के बारे में जब नादिर शाह को पता चला तो इसे लूटने के लिए वर्ष 1793 में नाथद्वारा पहुंचा. मंदिर के बाहर एक फकीर ने उसे इस मंदिर में लूट पाट करने से मना भी किया था, लेकिन नादिर शाह नहीं माना. कहा जाता है कि जैसे ही उसने मंदिर के अंदर प्रवेश किया, उसके आंखों की रोशनी चली गयी. मंदिर में बिना लूटपाट किये जैसे ही उसने मंदिर की चौखट के बाहर कदम रखा, उसकी आंखों की रोशनी वापस लौट आयी. श्रीनाथजी के मंदिर की इस महिमा को देखकर उसने मंदिर में लूटपाट करने का इरादा छोड़ दिया था.

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